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चतुर्थपरिछेद.
३२५ णारे दीवशनी नावना ह्मारी,सफल फली सवाज री।चलो सखी विलँवनकीजीये, बंदीजेश्रीजिनराज री॥४ कुण । नाबजगति दिलमें घणी, सकि सा थै सामग्रीसाजरी ॥ हरखचंदरांणी चेलना ॥ साख्या निज आतमकाजरी ॥ ५ कूण ॥ इति
रागिणी सिन्धु आदिनाथ जिन प्यारा हो, तेरो दरशन आन न्दकारा १॥ नानि राय मारुदेविके नंदा। तुम ता रण संसारा हो ते॥ तुमरे गुणको पार न पावे, न जन करे जगसारा हो ते३॥ बरस दिवसने पारणे, स्वामी पीयोरस अपारा हो ते ॥४ ईन्छचन्नी पास्या पुरो। मेटो कष्ट हमारा, होते० ५॥ इति
रागिणी नैरवी - समऊ परी मोहे समझ परी जगमाया सब कुं ती ज० ॥१॥ आजकाल तुं कहा करै मूख, नांदि जरोसा दिन एक घरी ज० ॥ ॥ गाफिल बिन जर नांहि रहो तुम, सिर पर घुमें तेरे काल अरी जण ॥३॥ चिदानंद ये वात हमारी प्यारे, जाणो हो नित्त दिल मांहि खरी ज॥४ ईति
पुनः चितमें धरो प्यारे चितमें धरो ये सीख हमारी अब चितमें धरो, थोमासा जीवनां काज अरे नर, काहेकुं बलपर पंच करो ये ॥१॥ कूम कपट पर