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जैनधर्मसिंधु.
जवदुख जंजन जन मनरंजन, लंबन मृग सुखक न्द ॥ ३० ॥ गुन विलासपदपङ्कजनेटत ॥ पायोप रमानंद ॥ ४ ज० ॥ इति
रागिणी भैरवी मे होली - ताल कवाली मेरे जाई जुई गुलावरी ॥ याज पूजनको ल हरख जयो || एटेक || केतकी चंपक मरु मोघरा ॥ फूलकी पगर जरावरी ॥ थाज प्रभु० ॥ १ ॥ मुकट कुंमल शिरबत्र विराजे ॥ यांग शोहे जनावरे ॥ ज० २ ॥ संत सवे मिली जावना जावो ॥ मादल ताल मिलाबरी | आज ३ ॥ अनन्तनाथ जीके गुणगांन ॥ लालगुलाल उमावरी । यज० ४ ॥ कर जोरी प्रधागे अरजी ॥ जवखसे बोमावरी ॥ ०५ पोहोरहे नांम तुह्मारा । ध्यानधरूं शुजनावरी ॥ ० ६ आनन्द हरष वधाई उनको || विनय सहित गुणगावरी ॥ श्र० ७ ॥ इति रागिणी सिन्धनैरवी
कुण वन वीर समोसा मैतोसु पिदे श्रवनधुनि आजरी कुण ॥ जंगम तीरथ सुरतरु, जगनायक, श्री जिनराजरी || १ कुण० ॥ गोतमगधर सारिषा, साथै एकादश गणधारी ॥ मुनिचऊदसहससाथे जला, गुरु तारण तरण जिहाजरी ॥ २ कुल० ॥ शमव सरण रच ना रची, मिलच ससुरराजरी ॥ सूर नर विद्याधर मिली || मिलचन विहसंघ समाजरी ॥ ३ कु०॥ घ