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३०६ जैनधर्मसिंधु. अतिचार ॥ शिवगति आराधनतणो जी, ए पहेलो अधिकार रे ॥ जि ॥६॥
॥ ढाल चोथी॥ साहेलमीनी देशी॥ ॥ पंच महाव्रत श्रादरी ॥ साहेलमी रे ॥ अथवा त्यो वन बार तो ॥ यथाशक्ति व्रत आदरी ॥ सा० ॥ पालो निरतिचार तो ॥१॥ व्रत लीधा सं. नारीयें ॥ सा० ॥ हियडे धरीय विचार तो ॥ शिव गति आराधनतणो ॥ सा० ॥ ए बीजो अधिकारसाहम्मी संघ खमावियें ॥ सा॥ जे उपनो अमोति शी लाख तो ॥ मन शुळं करो खामणा ॥ सा॥ कोंश्शुं रोष न राख तो ॥३॥ सर्व मित्र करी चिं. तवों ॥ सा ॥ को न जाणो शत्रु तो ॥ राग द्वेष एम परिहरो ॥ सा ॥ कीजें जन्म पवित्रतो ॥४॥ साहम्मी संघ खमावियें ॥ सा०॥ जे उपनी अप्रीति तो ॥ सजान कुटुंब करी खामणां ॥ सा ॥ ए जि नशासन रीति तो ॥५॥ खमियें ने खमावियें ॥ सा० ॥ एहज धर्मनो सार तो ॥ शिवगति आराधनतणो ॥ सा ॥ ए त्रीजो अधिकार तो ॥६॥ मृ षावाद हिंसा चोरी ॥ सा ॥धन मूर्चा मेहुन्नतो॥ क्रोध मान माया तृष्णा ॥ सा० ॥ प्रेम वेष पैशुन्य तो ॥ ७॥ निंदा कलह न किजीयें ॥ सा ॥ कूडां न दीजें आल तो॥रति अरतिमिथ्या तजो ॥साणा माया मोह जंजाल तो ॥ ॥ त्रिविध त्रिविध वो.