________________
तृतीयपरिवेद.
ए प्रायश्चित (तप) करना कहेसो स्विकार करना ॥
इति दिनचर्यायां वार्षिक कृत्यानि ॥
॥अथ श्राजन्म कृत्यान्याह ॥ त्रिवर्ग सिकिके लिए सर्व प्राणिमात्रनें अपने ज • न्मसें जीवित पर्यंत अगरह कृत्य करना सोकहते हैं. __ प्रथम कृत्य यहहे की जैनोने धर्म, अर्थ, काम यह तीन वर्ग यथायोग्य साधन हो शके एसे स्थान पर निवास करना क्योंकी जहां जिनमंदिर, अपने स्वजातीयजन, अपने गुरुकी जोगवाई, खान पान शु ही न होय एसे स्थानपर रहनेंसें सुख न हो सकेगा.
उसरा कृत्य यहहे की त्रिवर्गसिझिके लिए यथायोग्य विद्यान्यास करणा क्यों की संपूर्ण विद्या न होय तो सर्व प्रकारसे दानी प्राप्त होवेगी. त्रिवर्ग संसि किन हो शकेगी.
तीसरा कृत्य उत्तम स्त्रीसे लग्न करना क्यों की स्त्री विना त्रिवर्गका सुख साधन न हो सकता हे. __ चोथा कृत्यमे सन्मित्रोंसे मित्रता रखणी क्यों की सन्मित्रोंके सहवाससे कश्कर वातोंका लान मिल शक्ता हे नहिबणे तोजी एक दो धर्म मित्रतो अवश्य रखना चाहिये.
पंचम कृत्य यहहे की उत्तम प्राणीने यथाशक्ती एक जिन मंदिर अवश्य करना क्यों की इससे ल क्ष्मी की साफल्यता और जन्म सफल होता हे.