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तृतीयपरिच्छेद .
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निद्रा, आहार, जय, स्नेह, लता, काम, कलि ( लडाइ ) क्रोध. यह चिजें ज्यों ज्यों अधिक कीये जांय त्यों त्यों अधिक वढती जाती है.
विघ्न रूप वल्लिका समुदायकों छेदनेंमें साक्षात् कुहाडा समान श्री नेमिनाथ जगवंतकों याद कर के सयन करें तिनकों अवश्यमेव पुष्ट स्वप्नोंका परा जव न हो शक्ता हे.
अश्वसेन राजा और वामादेवी राणी के पुत्र, श्रीपा र्श्वनाथजीका नाम स्मर्ण करके सोवे तो अवश्य मेव नर्थ कारक पुष्ट स्पप्न न देखें. महसेन राजा श्रौ र लक्ष्मणा नाम राणी के पुत्र श्री चंद्रप्रन स्वामीका स्मरण करनें सें सुखसें निद्रा याती हे. सर्व विघ्नरूपी सर्पके दूर करनें में साक्षात् गरुम समान, परम सर्व सिद्धि प्रदायक, श्री शांतिनाथ स्वामीका जो ध्यान करताहे उनकों बिलकुल जय न हो शक्ता हे.
॥ इति दिनचर्यायां चतुर्थ वर्गः ॥
सर्व जवोंमें उत्तममें उत्तम यह मनुष्य जन्मकों प्राप्त होके प्राणि गणने उसे सुकृत करके सकल सफल करना. निरंतर धर्म के सेवनसें सुखजी तदनु सार अचल मिल शक्ता हे. वास्ते दान, विद्याध्यय न, शुजध्यान. जप तपादिक सुकृत्योंमें अपने दिन अवंध्य (खंग) करना.
आयुषके तीसरे जागमे अथवा अंत्य समयमे