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जैनधर्मसिंधु तृतीय परिवेद प्रारंनः। अथ श्रावकोंकी दिन चर्या कहते हैं. ॥ चिदानंद स्वरूप, रूपसे रहित, रक्षक और परम ज्योतिरूप, एसे सिर्फ परमात्माकों मेरा नमस्कार हो. मनः शुछिकों धरने वाले योगीश्वरों, ध्यान रूपी दृष्टि करके जिस्का स्वरूपकों देखतेहें; एसे परमेश्वरकी में स्तवना करताडं.प्राणिगण सुख समूहकों चाहतेंहें. और सर्व सुख समूह मोदमेंहे. वो मोदपदकी प्राप्ति ध्यानसें होतीहे. और ध्यान मनकी शुद्धीसे होताहे मनोशुद्धी कषायोके जयसेंहोतीहे कषायोंका जय इंडियोंके विजयसें होताहे. इंडियोंका विजय सदाचारसें होताहे. गुणोंका निबं. धन करानेवाला सदाचार समुपदेशसे प्राप्त होताहे. समुपदेशोंसें समृद्धिकी प्राप्ति होतीदे समृद्धि प्राप्त होनेसे सर्वत्र गुण प्राप्त होनेका उदय होताहे. सद्गुणोके उदयकी प्राप्तिके लिए श्राचारोंपदेश नामक ग्रंथकी रचना करी जातिहे. सदाचारके विचारोका निरूपण करने में रुचिकारक, विचक्षण पुरुषोको मनन करने योग्य, देवानु प्रियोंकों अत्यानंदकारी, यह ग्रंथ; पुण्यवंत प्राणियोको, विशेष श्रवण करने लायकहै. ___ अनंत पुजल परावर्ती करके पुनः उष्प्राप्य यह मनुष्य जन्मको प्राप्त होके विवेकी प्राणिकों धर्म