________________
द्वितीयपरिद.
२२१ तप पूरा होता हे. उद्यापनमे उन्नवे मोदक मंदिरमें ढोकना गुरु नक्ति करना.
॥अष्टमी तप ॥ अष्टमी अष्टमीके दिन उपवास अथवा आयंबिल करके आराधना करनी. उद्या पनमे दूधसे जरा हुवा कलसके उपर श्वेत वस्त्र ढां कके तिसके उपर सक्कर के आठ मोदक रखके और ज्ञानोपकरण सहित कर्म दय निमित्त प्रतिमा वा पुस्तककी पास रखनेसे उद्यापन होताहे. इस्मे तपके दिन चंप्रन जिनाय नमः ए गुणना गुणना॥
॥ अष्टापद पाहुडी तप ॥ आशोज अष्टमीसे पू र्णिमा तक आठ दिन एकाशना करना ॥ अष्टापद तीर्थायनमः ए पद गुणना उद्यायनमें जिन पूजा पढावी और नैवेद्यादिक ढोकन करना ॥
॥अशोक वृद तप ॥ श्राशोजके मासमें एक उपवास एक एकासणा एसे तीस दिनका यह तप हे. सिझपदको गुणना. उद्यापनमे अशोक वृक्ष चां दिका बनाके मंदीरमे स्थापनकर पूजा पढानी.
॥ चांडायण तप ॥सुदि प्रतिपदासें एक उपवास एक आयंबिल एसे पनरा दिनका यहतपहे. सिद्धपद गुणना. उद्यापनमे पनरे लामु और चांदीकी चंद्र मूर्ति मंदरमे रखे और पूजा पढावे ॥
॥ सूरायन तप ॥ कृक्ष पदके प्रतिपदासे उपवा स आयंबिल पनरे दिन तक करे. सिझाणं पद गूणे.