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जैनधर्मसिंधु.
स्वर्ग करंगक तप ॥ प्रथम बारे एकाशना, नव नी
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पांच ध्यायं बिल, एक उपवास, एसे २७ दिनसे यह
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तप पुरा होता है. सिद्धाणं पदका गुणणा गुनना ॥ ॥ सौभाग्य सुंदर तप ॥ एक उपवास और एक श्रयं बलकी एक ली. एसें सोले उली करनी र्थात् बत्तीस दिनसे यह तप पूरा करना ॥ सिद्ध पद गुणना || उद्यापन उपर प्रमाणे करना.
॥ चोसहिया तप ॥ एकासना यांयं बिलकी एक उली एसी बत्तीस डेली करने से तप पूरा होय ॥ इस्मे सिद्धाणं पद गुणा ॥
॥ अष्टाहिका तप ॥ एकेक जिनवरके पांच पांच कल्याणक के एकासने करनेसे चोवीस जिनके ९६० एकासने करने || जिस तीर्थंकरका कल्याणक होवे उसी जिनके नामकी नवकारवाली वीस गुएनी । यह कल्याणक तप जेसा तप हे परं अनुक्रम जिन्न हे ॥ उद्यापनमे चोवीश प्रकार के पक्कान्न चोवीश तिलक, प्रभु जिके सन्मुख रखना ॥ संघ पूजा करनी ॥
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॥ बन्नु जिन तप ॥ श्रतीतानागत वर्त्तमान मी लके तीन चोवीशी तथा सीमंधरादिक वीश विहर मान जिन और चार शास्खते जिन मील बन्नु जिन
यि एकेक उपवास करना और तिस तिस जि नके नामकी नवकार वाली गुपनी बन्नु दिनसे यह
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