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द्वितीयपरिच्छेद. नमंदिर मांहे। बाह्य मंगपै ५॥ ७ हाथ प्रमणे में डल रचना करै । विस्तारसें सब विधि गुरूके बचन से करके । नव पदजी की पूजा पढायके कलस ढाले । धवल मंगल गीतगान गावे । वाजित वजा वे । (इसी तरे) महामोहबव । उदारचित्तसें करे । मंगल दीप आरती प्रमुख करे। मुसरे दिन विस ऊन करे । इति संखेप सिद्धचक्र मंगल विधिः । _उद्यापनमें ज्ञान नक्तिके कारण । ए पूग। ए। वीटांगणा। ए पुस्तक ए लेखण । ए ग्वणी। नव तोरण । ए रुमाल । ए दोरा। ए कटासणा। ए थापना ए चंपा । ए पूछिया। ए आर ती ए। कलश ए जापमाला। एमंदर । ए प्रतिमा। ए तिलक । ए मुगट । (इत्यादिक) अनेक नव नव चीज बणावे । शक्ति न होय तो यथाक्तै रोकनाणो चढावै । देव पदको देवव्यमैं देवे । गुरु पदको गुरु कों देवे। ग्यानपद को ग्यानखाते लगावे । इत्या दिकयथाजोग्य शुन्ज क्षेत्रे खरच करे । इति सिकच क्र संदेप उद्यापन विधिः ॥
॥अथ वीस स्थानक तपकरण विधि लि०॥
॥ तिहां प्रथम सुन महुर्त्तके दिन । नंदी स्थापना पूर्वक । सुविहित गुरुके समीप। वीश स्थानक तप । विधि पूर्वक उच्चरे । उली दो माससें लेके (या वत्) बम्मामें पूरी करे । (कदाचित् ) बम्मास मध्ये