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जैनधर्मसिंधु. ॥ अथ तपस्या ग्रहण करणे कों गुरुके पास
जाणेकी विधि लि॥ ॥प्रथम शुन दिन शुज घडी देखके । अछा वस्त्र आनूषण पहरे । लिलाममे तिलक करे । दोव। सर । मस्तकमें धारण करे।हाथके मोली बांधके । अदत । सुपारी। श्रीफल । नेवेद्य । यथाशक्ति रोक नाणो लेके । नवकार गुणतो थको। गुरूके पास जावे । छादशावर्त बांदणा करके।झान पूजा करे पीछे बहुत प्रमोदवंत होके । गुरुके मुखसे तप ग्रहण करे.
॥अथ संदेप ऊजमणाविधि लि॥ ॥ पंच वर्णके धान्यसें सिकचक्रका मंडल करै। सिकचक्रजी के चौतरफ तीन गढ चूमीके श्राकार बनावै पहिलै गढमांहे। अष्टदल कमलके आकार नव पद स्थापन करै । पद पद के वर्ण गुण प्रमा णै । रक्तादिक चढावे । (ओर) पंचवर्णके धान्य । नवनालेर प्रमुखके गोटा रंगके। जिसपदके जैसे वर्णके होश (तैसे ही) रंगका गोला चढावै । पंच वर्णी (ए) धजा चढावै । दूसरै वलयमें । सोले श्री फल (अथवा) पूंगी फल चढावै । तीसरे वलयमें (४)बुहारा खारक चढावै। नव निधानके ठिकाणे(ए) नव बडा फल चढावै दश दिग्पाल । नवग्रहकों । पक्कान्न प्रमुख चढावै।इत्यादिक विधिसंयुक्त । सिक चक्र स्थापना । घर देहरासर आगे करै । और जि