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द्वितीयपरिचैद.
२०७ ४१ अंगप्रविष्ट श्रुत। ४२ अनंग प्रविष्ट श्रुत। ४३ अणुगामि अवधिज्ञानाय नमः। ४४ अननुगामि अवधिशानाय नमः। ४५ वर्डमान अवधि। ४६ ह्रियमान अवधि। ४७ प्रतिपाती अवधि। ४ अप्रतिपाती अवधि। भएकजुमति मनः पर्यवज्ञाय नमः। ५० विपुलमति मनः पर्यवज्ञानाय नमः। ५१ लोकालोक प्रकाशक श्री केवलझानाय नमः।
॥इति एकपंचासत ज्ञाननेदाः॥ इस रीतसे (५१) नमस्कार करै। (खमा होके) अन्नत्थ उससिएणण (इत्यादि कहै) (५१) लोग स्सके काज सग्ग करिके । प्रगट लोगस्स कहै। पीछे सब पूर्वोक्त करणी करै।इतिसप्तम दिवस विधिः॥॥
॥ श्रथ अष्टम दिवस विधि वि०॥ ॥ (उही णमो चारित्तस्स) इस पदको (२) हजार गुणनो करै । चारित्रपदका उज्वल वर्णदे।(३सीसें) तंडुलका श्रांबिल करै। सित्तर नेद चारित्रपदके । चिंतवके नमस्कार करै ॥
॥अथ चारित्रपदके (७०) नेदलि ॥ १ प्राणातिपात विरमणरूप चारित्राय नमः ।