SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 179
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रथमपरिछेद. १४५ मुङ, उवजाया मुज देवया ॥ उवझाया कित्तियं ताणं, वोसिरामित्ति पावगं ॥४॥ साहु मंगलं मुन्न, साहु मुन्न देवया॥ साहु कि त्तिय ताणं, वोसिरामित्ति पावगं ॥ ५ ॥ एपंचे मंगलं मुझ, ए पंचे मुल देवया ॥ ए पंचें कि त्तियं ताणं, वोसिरामित्ति पावगं ॥६॥ एसो पंच णमुक्कारो, सब पावप्पणासणो ॥ मंगलाणं च सवेसिं, पढमं दो मंगलं ॥ ॥ इति स साय ॥ए आठमुं खमासमण ॥ ॥ पीश्वामि खमा०श्नाकारेण संदिसह नगवन् पांचमा आवश्यक नणी दैवसिक प्रा यश्चित्त विशोधनार्थ करेमि काजस्सगं.अन्नबन इत्यादिककहीने चंदेसुनिम्मलयरा सुधी चार लोगस्सनो कामस्सग्ग करवो. पी नमों अरिहंताणं, कहीने कानसग्ग पारी पनी प्रगट लोगस्स कहीये. ए ( नवमुं) ख मासमण. फरी श्वामि खमासमण पूर्वक श्बा कारेण संदिसह नगवन् अभिनव कानस्सग्ग गजं. () अनिनव अशेष मुस्करकय कम्मरकय निमित्तं करेमि कानस्सग्गं अन्न
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy