________________
जैनधर्मसिंधु. जी. पी गुरु (तथा) वडेरो करेमि नंते कहै ॥ पबी श्वामि खमासमण पूर्वक श्बाकारेण संदिसह नगवन्! बीजा आवश्यक नणी इरि यावदियं पमिकमुं जी. एम कही इरियावदि प डिक्कमी, परी तसनत्तरीकदेवी. पठी एक लो गस्सनो कानस्सग्ग करी, लोगस्स प्रगट कदे लोगस्स कहेतां दर्शनाचार निर्मल थाय ए बी जुं आवश्यक अने त्रीजुं खमसमण थयुं,पनी बामि खमासमण पूर्वक देठग बेसीने श्वाकारेण संदिस्सद जगवन् मानुं पमिलेहण करूं जी एम कही उत्तरासंगना बेमानुं पडिलेदण करवू. पनीश्वामि खमासमण पूर्वक श्नाकारेण संदि सह नगबन् त्रीजा आवश्यक नणी आवश्यक वांदणां करूं जी. पडे वांदणां देवै एम गुरु समी पें वांदणां बे वार दीजें, त्यां बीजी वारने वांदणे
आवस्सिाए, ए पद न कहेवू; अने राश्पडि कमणे; रा वश्कंतो कहेवू (परकीय) परिक वश्क्कंतो कहेवू(चनमासिये) चनमासि वश्कं तोकदेवू. (संवत्सरिये) संवबरोवश्क्कंतो कहे ए वांदणां देतां झानादि त्रण निर्मल थाय. ए