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प्रथमपरिवेद. १२५ सग्गं ( गुरु कहें करेद) अन्न ॥च्यार॥४॥ लोगस्सनो कानस्सग करी पारी प्रगट लो गस्स कदै ॥ पमिकमणो गववानो अवसर हवार खमासमण देई॥ (श्रीश्राचार्यजीमिश्र) कही वांदियेफेर खमासमण दे(श्रीनपाध्याय जी मिश्र)पबै वांदणा दई(जंगमयुग प्रधानन हारक श्रीपूज्यजीका नाम कही वांदिये ॥ बले खमासमण देई साधूजी वांदीये ॥ श्म च्यार खमासमणे पमिकमण गव॥बकारसमस्त श्रा वको वादूं (कही)गोमा लिये वेसी मस्तक नमावी दोय हाथे मुहपती मुखे देई सबसविराईय (इ त्यादि कहै) पिण श्बाकारेण संदिस्सह (इसो न कहै) पबै सकस्तव कही ॥ कनो थई करे मि० श्वामि गचं कानस्सगं0 (इत्यादि पाठ कही) तस्सुत्तरी अन्नत्थूण चारित्र शु नि मित्ते १ लोगस्सनो काउसग्ग करी (पारी) दर्शन शुद्धि निमिते लोगस्स कही सवलोए अ रिहंत चेश्ाणं ॥ करमि कानसग्गं इत्यादि कही १ लोगस्सनो कामसग्ग करी (पारी) झानातिचारनिमित्ते पुक्खरवरदी बढे (कही)