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________________ प्रथमपरिछेद. १२३ पठे श्री आचार्यजी मिश्र १ श्रीनपाध्यायमिश्र २ र्सवसाधु साध्वी वांडं अढा जे सु० कद ना फेर खमासमण दे॥पने देवसीप्रायश्चित्त विसोधवानिमित्तं करेमि कासगं अन्न लो गस्सनो कानस्सग करे पडे मुंहमे लोगस्स कदे पने दोपश्व नड्डादनिमित्तं करेमि कानसग्गं अन्न ४ लोगस्सनो काउस्सग करे मुंदडे लो गस्स कहे॥पने सिमायं संदिस्साएमि सिझाय करेमि॥पले श्रीसेट्ठी कहे॥पने नमोबुणं कही गेटो तवन कदे पठे जयवीराय कहे परे सिरथं नणज्यिपाससामिणो कहै प श्रीथंनना पा र्श्वनाथजी आराधना निमित्तं करेमि कानस्स ग्ग वंदण अन्न ४ लोगस्सनो कानसग्ग करे पड़े श्रीखरतरगतशृणगारदारजंयमयुगप्र धाननहारक दादाजी श्रीजिन दत्तसूरिजी महा राज चारित्र चूडामणी आराधवानिमित्तं करेमि कासग्गं अन्न १ लोगस्सनो कानसग्ग करे। इणीहीतरे दादाजी श्रीजिनकुशलसूरिनो र लो गस्सनो कानसग्ग पारी एक नवकार गुणी चै त्यवंदन करे चनक्कसाया कदै ॥ नमोबणं जय
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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