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भाई! यह कहां का न्याय है। किन्तु पांडवों में युधिष्ठिर शान्तिप्रिय व धर्मनिष्ठ थे। अतः वह अपने शेष चार भाइयों में रोष उत्पन्न होने पर उन्हें शांत कर देते थे। दुर्योधन की कर्ण से मित्रता थी और वे जरासंध से मिलकर निरंतर बैठकें किया करते थे।
यद्यपि कौरवों के हृदय का अभिप्राय कुटिल हो चुका था; पर वे वास्तविक अभिप्राय को गुप्त रखते थे। वे पांडवों से मिलने पर उनके सम्मुख कपट रूप में स्नेह भाव ही प्रकट करते थे। एक दिन महाबली भीमसेन कौरवों के साथ क्रीड़ा करने वन में गये; जहां भीम ने धूल में लेटकर कहा कि जो मुझे इससे निकाल लेगा; वही बड़ा बली होगा। सभी कौरव मिलकर भी यह न कर सके; अतः सभी कौरव भाई ग्लानि से भरे नगर को चले गये। इसी प्रकार एक दिन फिर वन क्रीड़ा के समय एक आंवले के वृक्ष पर कौरवों में से कोई न चढ़ सका, पर भीम उस पेड़ पर आसानी से चढ़ गया। यह देखकर कौरवों को अपनी दुर्बलता पर ग्लानि होने लगी। तब सभी कौरवों ने मिलकर भीम को उस पेड़ से गिराने के काफी प्रयास किये, पर वे सफल नहीं हुए। कौरवों के इस शत्रु भाव को भीम ताड़ गये व बोले- तुम सभी मिलकर इस पेड़ को उखाड़ फेकों ; क्योंकि इसके हिलाने से मेरा कुछ भी नहीं बिगड़ने वाला। भीम की यह बात सुनकर कौरव लज्जित हो गऐ। पुनः एक दिन वन क्रीड़ा में ही उसी आंवले के पेड़ पर भीम ने कौरवों की सहायता कर उन्हें चढ़ा दिया व बाद में स्वयं उस पेड़ को उखाड़कर तेज गति से दौड़ने लगे; जिससे अनेक कौरव भाई पेड़ से गिरकर चोटिल हो गये, तब एक भाई के निवेदन करने पर भीम को करुणा आ गई, तब भीम इस वृक्ष के साथ खड़े हो गये व कौरवों को धैर्य बंधाया। जब सभी कौरव घर चले गये तो उन्होंने मिलकर भीम से प्रतिशोध लेने का निश्चय कर लिया। तब एक बार एक सरोवर के तट पर कौरवों ने भीम को उस सरोवर में धकेल दिया, पर भीम जब तैरकर बाहर निकला, तो सभी संक्षिप्त जैन महाभारत 57