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स्तमित सागर, हिमबल, विजय, अचल, धारण, पूरण, सुवीर, अभिनंदन व वसुदेव थे। कुन्ती व माद्री उनकी दो अति सुन्दर कन्यायें भी थीं। कुन्ती अनेक कलाओं में निपुण व अति सुन्दर थी। अंधकबृष्टि के 8वें पुत्र सुवीर जिनकी प्राणप्रिया रानी का नाम कलिंगी था, बाद में मथुरा के शासक बने। सुवीर के पुत्र का नाम भोजकबृष्टि था। भोजकबृष्टि का विवाह सुमति नाम की सुन्दर रूपसी से हुआ था। भोजकबृष्टि जब मथुरा नरेश बने, तो उनकी महारानी सुमति से सबसे पहले उग्रसेन का जन्म हुआ। महासेन व देवसेन पुत्रों का जन्म बाद में हुआ। भोजकबृष्टि के यहां एक रूपसी कन्या ने भी जन्म लिया था, जिसका नाम बाद में गांधारी रखा गया था। उस समय राजगृही नगरी में ब्रहद्रथ नरेश का शासन था। इनकी धर्मपरायणा स्त्री का नाम सुन्दरी था। जो यथा नाम तथा गुणवती थी। ब्रहद्रथ के यहां जब पुत्र रत्न ने जन्म लिया तो राजगृही में भारी उत्सव मनाया गया। बाद में ब्रहद्रथ ने अपने पुत्र का नाम जरासंध रखा। वह प्रतिनारायण था व नरेश बनने पर इसने भरत क्षेत्र के तीन खंडों पर आधिपत्य जमा लिया था। उपरोक्त वर्णन पांडव पुराण से लिया गया है। यह पुराण उपरोक्तानुसार कुरूवंश की वंशावली को बताता है। इसी चंपापुरी को बाद में शौरीपुर या शौर्यपुर के नाम से जाना जाने लगा। वर्तमान में यह बटेश्वर के पास यमुना तट पर स्थित है।
हरिवंश पुराण में उक्त विवरण कुछ अलग तरह से दिया हुआ है। इसमें पांडव पुराण की भांति ही कुरूवंश के स्थान पर हरिवंश का वर्णन है। आचार्य श्री जिनसेन स्वामी पुराण के प्रारंभ मे लिखते हैं कि यमुना तट पर स्थित कौशांबी में कभी राजा सुमुख का शासन था। इनकी महारानी का नाम वनमाला था। एक बार वरधर्म नाम के मुनिराज जब आहार चर्या हेतु महल में पधारे तब नरेश ने नवधाभक्ति पूर्वक उन्हें आहार दान दिया। राजा सुमुख एवं रानी वनमाला मरणोपरांत विजयार्ध पर्वत में क्रमशः आर्य नाम के विद्याधर व मनोरमा हुए। एक देव इन दोनों को
संक्षिप्त जैन महाभारत - 25