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तथा बलि से वरदान मांगने को कहा। तब बलि ने कभी आवश्यकता पड़ने पर सात दिन के लिए राज्यभार देने का वर मांगा; जिसे महाराज पद्मरथ ने सहर्ष स्वीकार कर लिया।
दैवयोग से अकंपनाचार्य महाराज का 700 मुनियों का संघ विहार कर कुछ दिनों बाद हस्तिनापुर आया व वहां चातुर्मास की स्थापना कर ली । स्थापना के पूर्व आचार्य श्री ने सभी मुनियों को किसी भी वाद-विवाद में न पड़ने का निर्देश दिया। जब मंत्री बलि को उस संघ के आगमन के बारे में मालूम चला; तो उसने उज्जैन की घटना का प्रतिशोध लेने के उद्देश्य से राजा पद्मरथ से अपना उधार वर मांगा व उनसे सात दिवस का राज्य का अधिकार ले लिया। बाद में उसने पुराने वैर के वशीभूत होकर सभी मुनि संघ को सेना से घेर लिया व मुनि संघ के चारों ओर यज्ञ के बहाने अग्नि प्रज्जवलित कर उसमें दुर्गंधित वस्तुयें होमकर मुनि संघ को दारुण कष्ट देना प्रारंभ कर दिया। इस अत्याचार से द्रवित होकर महान ऋद्धियों के धारी मुनि श्री विष्णुकुमार धर्म वात्सल्य से प्रेरित होकर राजकाज से दूर निर्लिप्त राजा पद्मरथ के पास गये व मंत्री बली के अत्याचारों के बारे में उन्हें बताया व इस घोर अत्याचार को रोकने के लिए उन्हें कहा। तब राजा पद्मरथ ने वर की बात कह कर उन्हें अपनी विवशता बतलाई व कहा कि यदि इसे आप रोक सकते हो; तो इसे अवश्य रोक दें। तब विष्णु कुमार मुनि ने राजन् से कहा कि जब तुम कुछ नहीं कर सकते, तो मुझे ही कुछ करना पड़ेगा।
वापिस आकर मुनि श्री विष्णुकुमार ने तपोबल से वामन का रूप धारण किया व वे सीधे यज्ञ भूमि में पहुँचे गये। वहां पहुँचकर उन्होंने राजन बलि से कहा कि मैं वेद-वेदांतों का ज्ञाता ब्राह्मण विद्वान हूँ व आप सभी के मनोरथों को पूर्ण करने में पूर्णरूपेण सक्षम हूँ। इसलिए मुझे भी कुछ दान देकर मेरा मनोरथ पूर्ण कीजिये। तब राजा बलि ने कहा, आपकी जो भी मनोकामना है, प्रकट कीजिये। आप सत्पात्र
संक्षिप्त जैन महाभारत 21