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आपको केवलज्ञान की प्राप्ति हो गई तथा आप संपूर्ण लोक के 100 इन्द्रों से पूजित त्रिलोकीनाथ बन गये। आपके समवशरण में हमेशा 35 गणधर, 60000 यतीश्वर व 60300 आर्यिकायें उपस्थित रहकर धर्माराधना करते थे। आपने सम्मेद शिखर पर्वत से चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को सकल कर्मों का नाश कर मोक्षलक्ष्मी का वरण किया।
चक्रवर्ती व तीर्थंकर कुंथुनाथ भगवान के पश्चात् कुरूवंश में अनेक राजा-महाराजा हुए। तत्पश्चात सुदर्शन नाम के महापराक्रमी नरेश हुए। उनकी भार्या का नाम महारानी मित्रसेना था। आपके ही गर्भ में फाल्गुन शुक्ल तृतीया को एक महाप्रतापी बालक आया। उसका जन्म अगहन शुक्ल चतुर्दशी को हुआ। इस तीर्थंकर बालक का जन्मोत्सव भी इन्द्र ने सभी देवी-देवताओं के साथ तीर्थंकर बालक को पांडुक शिला पर ले जाकर वहां 1008 कलशों से अभिषेक कर मनाया व उनका नाम अर/ अरहनाथ रखा। राज्यभार ग्रहण करने के बाद आपने चक्रवर्ती पद प्राप्त किया। कई सौ साल बाद आपको अकस्मात् संसार से विरक्ति उत्पन्न हो गई, अतः आपने अपने ज्येष्ठ पुत्र अरविंद को राज्य का भार सौंपकर वैजयंती नामक पालकी से दीक्षा वन जाकर पंचमुष्टि केशलौंच कर मुनि दीक्षा ग्रहण कर ली। आपने अगहन शुक्ल दशमी को दीक्षा ग्रहण की। आप मन:पर्ययज्ञानी हो गये। घोर तपश्चरण कर 16 वर्ष पश्चात् सकल घातिया कर्मों का नाश कर कार्तिक शुक्ला द्वादशी को आपको आम्र वृक्ष के नीचे केवलज्ञान उत्पन्न हो गया। तत्पश्चात कुबेर रचित समवशरण में विराज कर वर्षों तक आपने संसारी जीवों के कल्याण हेतु धर्मोपदेश दिया। तथा अंत में सम्मेदाचल पर्वत में सकल कर्मों का नाश कर आपने मोक्षलक्ष्मी का वरण किया। आप अठारहवें तीर्थंकर के साथ-साथ चक्रवर्ती व कामदेव भी थे।
अरहनाथ चक्रवर्ती के बाद उनके पुत्र अरविंद कुरूवंश के शासक बने। उसके बाद शूर, पदमरथ, रथी, मेघरथ राजा बने। मेघरथ की धर्मपरायणा स्त्री रानी पदमावती थी। पदमावती
संक्षिप्त जैन महाभारत 19