SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 185
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ से लेकर आधुनिक काल तक के काव्य जगत पर अपनी आलोचनात्मक दृष्टि से चिंतन-मनन किया है। निश्चित ही यह पाठकों के लिए एक पठनीय एवं संग्रहणीय कृति है। गोविन्द उवाच मध्यम पुरुष प्रत्येक पसन्दीदा लेखक के बारे में अधिकाधिक जानने की इच्छा रहती है। इसमें सामीप्य सुख मिलता है। इसमें संदेह नहीं कि जिसने एक बार गोविन्द शास्त्री को पढ़ा, वह उनका हो गया, एक बार जो उनसे मिला वह भूल नहीं सका। उनका साक्षात्कार एक घटना बन गई। हर विषय पर उनके अन्तरंग चिंतन की छवि इस पुस्तक में आपको मिलेगी। आओ, जरा सोचें! आचार्य अशोक सहजानन्द आचार्य अशोक सहजानन्द जी एक वरिष्ठ पत्रकार और यशस्वी लेखक हैं। इस पुस्तक में उनकी चर्चित संपादकीय टिप्पणियों एवं लेखों का अनूठा संकलन है। यथार्थ के धरातल पर जिंदगी जीने वाले और दशकों से विद्यमान सामाजिक विसंगतियों और शोषण तथा अन्याय के साथ-साथ जीवन के मानवीय मूल्यों के चतुर्दिक ह्रास का संत्रास भोगते आम आदमी को ये निबंध अच्छे ही नहीं लगेंगे, उसे संबल भी प्रदान करेंगे। कबिरा खड़ा बाजार में डॉ. प्रद्युम्न अनंग इस महत्वपूर्ण काव्य संग्रह के सहज, सरल भाव बोध और निर्भीक बेबाक तेवर हमें बरबस फक्कड़ कवि कबीर की याद दिलाते हैं। कबीर की तरह ही कवि अनंग अपनी रुलाइयों के माध्यम से जहां एक ओर विभिन्न सम्प्रदायों के अलमबरदारों की खबर लेते हैं वही दूसरी ओर व्यवहारिक दिशा-निर्देश भी देते हैं। एक पठनीय एवं उपयोगी कृति। पंच काव्यामृत डॉ. रवीन्द्र कुमार जैन डॉ. रवीन्द्र कुमार जैन के जीवन बोध की दो रेखाएं बड़ी स्पष्ट हैं। मानवतावादी और आध्यात्मिक। मानवता के कल्याण के लिए वे उन तमाम विरोधी शक्तियों से लड़ते रहे, जो मानवता की अवरोधक थी। इस क्रम में वे उन शक्तियों का सूक्ष्म विश्लेषण करते हैं जो मनुष्य का शोषण करती हैं। यही डॉ. रवीन्द्र कुमार जैन का यथार्थवादी रूप है। 'पंच काव्यामृत' के रचनाकार ने मानव मंथन कर एक निष्ठावान सरस्वती के आराधक का कर्तव्य निभाया है। “तप्तलहर', 'जनमानस' से 'साक्षात्कार' करती है। अपने ही अंदर 'खुद की तलाश' करती है तब कहीं जाकर 'अस्मिता' निखरती है। संक्षिप्त जैन महाभारत - 183
SR No.023325
Book TitleSankshipta Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2014
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy