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________________ को धारण कर गौतम स्वामी बोले, हे श्रेणिक ध्यानपूर्वक सुनो भगवान श्री ऋषभनाथ ने जगत प्रसिद्ध कुरूवंश में उत्तम लक्षणों के धारक दो श्रेष्ठ राज्यों की स्थापना की; जिनके अधिपति क्रमशः राजा सोम व राजा श्रेयांस थे। राजा सोम की पत्नी का नाम लक्ष्मीमति था। वे कुरुजांगल देश के हस्तिनापुर नगर के शासक थे। जब भगवान आदिनाथ ने मुनि दीक्षा ग्रहण कर ली, तब वे एक बार आहार चर्या हेतु हस्तिनापुर नगर पधारे; जहां राजा सोम व श्रेयांस ने पूर्व जन्म की आहार चर्या का स्मरण कर उन्हें नवधाभक्ति पूर्वक आहार दान दिया। वैसाख सुदी तृतीया को ये आहार दान दिया गया था। आहार दान के प्रभाव से उनके यहां पांच आश्चर्य हुए तथा वे अक्षयनिधि के स्वामी बन गये। तभी से संपूर्ण भारतवर्ष में वैसाख सुदी तृतीया का दिन अक्षय-तृतीया पर्व के नाम से मनाया जाता है। राजा सोम के जयकुमार नाम का प्रतापी पुत्र था। उनके विजय आदि 14 पुत्र और थे। जयकुमार ऋषभ पुत्र भरत के प्रधान सेनापति थे। राजा सोम वैराग्य धारण कर मुनि बन गये। इसके पूर्व उन्होंने अपना राज्य जयकुमार को दे दिया था। बाद में राजा सोम गहन तपश्चरण कर मोक्ष पधारे। उसी समय काशी देश की वाराणसी नगरी में राजा अकंपन राज्य करते थे। उनकी धर्मपरायणा रानी का नाम सुप्रभा था। इन दोनों के 1000 पुत्र व 2 पुत्रियां थीं। एक का नाम सुलोचना व दूसरी का नाम लक्ष्मीमति था। एक बार राजा अंकपन ने अपनी बड़ी पुत्री सुलोचना के लिए प्रथम बार स्वयंवर का आयोजन किया। उस स्वयंवर में अनेक देशों के नरेश व राजपुत्र आये थे। इसी स्वयंवर में भरत के पुत्र अर्ककीर्ति व राजा सोम पुत्र जयकुमार भी उपस्थित थे। सुलोचना ने इस स्वयंवर में जय कुमार के गले में वरमाला डालकर उनको वरण किया; पर यह बात भरत पुत्र अर्ककीर्ति को नागवार गुजरी; जिससे अर्ककीर्ति ने क्रोधित होकर राजा अकंपन पर आक्रमण कर दिया। परन्तु जयकुमार ने राजा संक्षिप्त जैन महाभारत, 15
SR No.023325
Book TitleSankshipta Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2014
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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