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करते हुए कहा-'हे केशव! अब आप लोगों को किंचित भी विलंब करना उचित नहीं है। प्रतिपक्षी नरेशों में अब केवल मगध सम्राट जरासंध ही तो जीवित है। उसकी भी भवलीला समाप्त कर डालिये। आपके उत्कर्ष का योग्य अवसर उपस्थित हो गया है।' इस आकाशवाणी को सुनकर श्रीकृष्ण ने जरासंध का युद्ध के लिए आह्वान किया। तभी जरासंध ने अपने एक चतुर सेनानायक से युद्ध के लिए समागत वीरों का उसे परिचय देने को कहा-तब वह जरासंध से बोला-यह गरूण ध्वज वाले श्वेत घोड़ों के साथ श्रीकृष्ण का रथ है। बैल की पताका वाला रथ नेमि का है। इसमें हरे रंग के घोड़े जुते हुए है। रीठा के समान वर्ण वाले घोड़ों से जुता रथ जिस पर तालकी ध्वजा है, वह बलदेव का है। वानर ध्वजा वाला कृष्ण वर्ण के घोड़ों से जुता रथ सेनापति का है। नीले गर्दन वाले घोड़ों का रथ युधिष्ठिर का है। श्वेत व वेगवती घोड़ों वाला हाथी की ध्वजा सहित रथ अर्जुन का है। नीले घोड़ों का रथ भीम का है व सेना के बीच लाल रंग के घोड़ों व सिंहध्वज वाला रथ समुद्रविजय का है।
इस प्रकार विरोधी सैन्य बल का परिचय प्राप्त कर जरासंध ने अपना रथ यादव सेना की ओर मोड़ा। जरासंध के सभी पुत्र उसके साथ थे। जरासंध का बड़ा बेटा कालयवन मलय हाथी पर सवार होकर युद्ध करने लगा। कालयवन ने कितने ही वीरों को युद्ध क्षेत्र में मार गिराया। यह देखकर सारण ने क्रोधित होकर एक ही प्रहार से कालयवन का मस्तक छेद कर उसे मार डाला। जरासंध के शेष पुत्रों को श्रीकृष्ण ने यमलोक पहुँचा दिया। तभी श्रीकृष्ण व जरासंध आमने-सामने आकर युद्ध करने लगे। श्रीकृष्ण ने एक अग्नि बाण का प्रयोग कर जरासंध की समस्त सेना में अग्नि दाह उत्पन्न कर दिया। तब अर्धचक्री जरासंध ने अग्निबाण के प्रभाव को नष्ट करने के लिए जलद बाण प्रयोग किया एवं अग्नि को निर्वापित कर अपनी सेना को आपत्ति से मुक्त कर दिया। जब जरासंध ने
संक्षिप्त जैन महाभारत - 149