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कि क्यों व्यर्थ में हजारों सैनिकों को हताहत करने पर तुले हुए हो। उचित तो यह है कि मेरी अधीनता स्वीकार कर मुझसे संधि कर लो एवं पूर्ववत राजा बनकर सुख पूर्वक आनंदोपभोग करो। ऐसा करने से तुम्हारा अपयश भी नहीं होगा एवं तुम्हारी कीर्ति में भी वृद्धि होगी। तब दुर्योधन क्रोधित होकर युधिष्ठिर से बोला कि ऐसा कदापि नहीं हो सकता है। मैं अकेला ही तुम सबको नष्ट करने में समर्थ हूँ। इसलिए व्यर्थ का वार्तालाप न कर रणस्थल में पदार्पण करो। ऐसा कहकर दुर्योधन ने युधिष्ठिर पर खड़ग से प्रहार किया; किन्तु युधिष्ठिर ने उसका योग्यता पूर्वक प्रतिकार किया। उसी समय भीम वहां पहुँच गया। उसकी गदा विद्युत किरण की तरह चमक रही थी। योग्य अवसर पाकर भीम ने दुर्योधन के मस्तक पर उस गदा से सशक्त प्रहार कर दिया; जिससे दुर्योधन आमूल विछिन्न वृक्ष की भांति वहीं पृथ्वी पर धरासायी हो गया।
तब दुर्योधन जीवन से हताश होकर क्षीण स्वर में बोला-'क्या कौरवों की सेना में अब ऐसा एक भी वीर नहीं शेष रहा जो पांडवों का सर्वनाश करने में समर्थ हो। तब समीप खड़े एक सैनिक ने दुर्योधन से कहा-'क्यों नहीं, गुरू द्रोणाचार्य का वीर पुत्र अश्वत्थामा अभी जीवित है। यह पांडवों का विनाश कर सकता है। अपने पिता की भांति वह महापराक्रमी व अजेय है।'
अश्वत्थामा ने जब सुना कि दुर्योधन मृत्यु शैया पर अंतिम क्षण की प्रतीक्षा कर रहा है। तब उसे मार्मिक पीड़ा हुई। वह जरासंध के पास गया व बोला कि आज दुर्योधन भी अपने दस हजार सैनिकों के साथ धराशायी हो गया है। जरासंध यह सुनकर व्याकुल हो उठा, किन्तु यह सोचकर कि यह शोक करने का समय नहीं है, उसने अश्वत्थामा को पांडवों के साथ युद्ध करने का आदेश दिया। जरासंध की आज्ञा पाकर वह घायल दुर्योधन के पास गया व बोला-'हे वीर शिरोमणि आपके अभाव में मुझे समस्त संसार शून्वयत प्रतीत हो रहा है। आपकी उदारता के कारण
संक्षिप्त जैन महाभारत - 147