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अब अपनी कन्या के बड़े होने पर उसे भानकमार को परणाने के लिए इस पूरी सेना के साथ द्वारिका जाने को भेजा है। प्रद्युम्न ने जब नारद के मुख से यह वृतांत सुना तो वह नारद को विमान में छोड़कर व भील का वेष बनाकर दुर्योधन की सेना के सामने जाकर खड़ा हो गया व बोला कि कृष्ण ने मुझे जो शुल्क देना निश्चित किया है। वह देकर आगे बढ़िये। तब सेना प्रमुख बोला-बतलाओ आपका शुल्क क्या है? तब भील बने प्रद्युम्न ने कहा कि इस सेना में जो भी सारभूत वस्तु है वह मुझे दीजिये। तब साथियों ने कहा कि हमारे साथ सारभूत वस्तु तो दुर्योधन की पुत्री उदधि कुमारी ही है। पर यह तो कृष्ण की पुत्रवधू बनेगी। अतः यह हम तुम्हें कैसे दे सकते हैं। यह सुनकर प्रद्युम्न ने मायावी सेना से दुर्योधन की सेना को परास्त कर दिया और उदधि कुमारी को लेकर आकाश में स्थित नारद के साथ विमान में बैठ गया। फिर उसने अपना असली रूप प्रकट कर दिया। तभी नारद ने उस कन्या से कहा कि यह कृष्ण पुत्र प्रद्युम्न ही है; जो भानुकुमार से बड़े हैं। उदधि कुमारी नारद के यह वचन सुनकर प्रसन्नता को प्राप्त हुई।
संक्षिप्त जैन महाभारत - 111