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(१०) देवोमें वैचित्र्यताः
कोई देवता भव्य होते है तो कोई देवता अभव्य भी होते है। कोई देवता मंत्राधीन होते है, कोई तंत्राधिन होते है, कोई यंत्राधीन होते है। कोई देव सम्यगदृष्टि हात है, काई मिथ्याप्टि होते है, कोई मिश्र दृष्टिवाले भी होते है। कोई सुलभवोधी हैं तो कोई दुलर्भवाधि है। कोई देवता आराधक होते है, कोई विराधक होते है। कोई अंतभवी होते है, कोई अनंतभवी होते है। कोई प्रजारूप है, कोई प्रजापती है। कोई सुवुद्धि है, कोई कुवुद्धिदेवता है। कोई क्रोधी है, कोई शांतस्वभावी है। कोई धीरगंभीर है, कोई चपल है। कोई उर्ध्वलोकवासी है, कोई मध्यलोकवासी है कोई तिर्यकलाकवासी है। काई देवता सतोगुणी है, कोई देवता रजोगुणी है, कोई देवता तमोगुणी है। देवताओमें पाचो इंद्रिया, तीन योग, तीन ज्ञान, तीन दर्शन, चार कपाय, चार संज्ञा, छः लेश्या, आट कर्म, दस प्राण होते है। इस तरह देवलो" देवताआमें विविधता, वैचित्र्यता है। (११) मृत्युः
देवताओकी जघन्य आयु दस हजार वर्प और उत्कृप्ट आयु तेत्रीस सागरोपमकी है। मध्यम असंख्य भेद है। जैसे जैसे आयुकी अधिकता है, उसी अनुपातमें उनमें द्युति, शक्ति, कांति, गति, बुद्धि, ऋिद्धि, सुख आदिकी अधिकता होती है। देवोंकी वृद्धावस्था अंतिम छह माहकी होती है। देवताआकी मृत्युका समय जव नजदीक आता है तब वे अपने अवधिज्ञानसे यह जान लेते है कि अब इस देवलोकमें मेरी आयु पूर्ण होनेवाली है तव उन्हें अपने आभुषण और विमानोंकी कांति घटी हुई दिखाई देती है। वस्त्र मलिन दिखाई देते है। कल्पवृक्ष और फुलोंकी माला कुम्हलाये हुए दिखती है। शरीरकी कांति, वल क्षीण होता हुआ दिखाई देता है, उनका हास्यविनोद जाता रहता हैं। दवियाँ और मित्रोकं वियोगकी कल्पनासे वे पिडित हो जात है। उस समय जिवित होते हुए भी जिवित नहीं लगते है। जब देवता अपने अवधिज्ञानस यह जान लेते है की हमारा आगामी जन्म मानव पर्यायमें होना है, वहा आर्यक्षेत्र, उत्तम कूल और सुधर्मकी प्राप्ति होगी तो वे हर्पित हो जाते है की हम आगामी जन्ममें धर्मसाधना करेंग किंतु वे जब यह देखते है की हमारा जन्म पृी, पानी, वनस्पति और तीर्यंचमें होगा तो वे आर्तध्यानसे दुःखी हो जाते है। कभी कभी देवीकं ावित रहते देवता काल कर जाते है तो वह देवी उस स्थान पर उत्पन्न होनेवाले दुसर देवताकं साथ भोग भोगती है और कभी देवीके काल होने पर उस स्थानपर उत्पन्न होनेवाले दूसरे देवी के साथ वह देव भोग भोगता है
और अपने चित्तकं वियोगजन्य शो दूर करते हैं। देवोमें अपनी या दूसरोंकी आयु वढाने, घटाने की क्षमता नहीं है। गति और योनि छुडानेकी शक्ति नहीं है। देवता निरुपक्रमी आयुवाले होते है।
૨૮ + ૧૯ભી અને ૨૦મી સદીના જૈન સાહિત્યનાં અક્ષર-આરાધકો