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(५) आहार:
देवताओं का आहार निहार दृश्य नही होता है। देवता कवलाहार अर्थात मुंहमे ग्रास डालकर आहार नहीं करते हैं। जब देवताओंको भूख लगती है तव भोज्यपदार्थ की कंवल सुगंध लेनमात्रसे तृप्ती हो जाती है। उत्तम देवता भूख लगनेपर सुधा, फल, पक्वान्न मेवा, मिष्टान्न आदि शुभ पदार्थोकी सुगंध लेते हैं और निम्न जातिक देवता मद्यमांस आदि अभक्ष्य पदार्थोकी दुर्गंध लेते है । आहारके संबंध में यह नियम है की जघन्य आयुवाले देवोंको एक दिनके अंतरसे भूख लगती हैं अर्थात् दस हजार वर्षकी आयुवानं देव एक-एक दिन वीचमें छोडकर आहार लेते है । पल्यांपमकी आयुवाले देव दो दिन से लेकर नऊ दिनके अंतरसे आहार लेते है। सागरोपमके विषयमें यह नियम है की जिनकी आयु जितने सागरोपमकी हो, उतने हजार वर्ष के वाद आहार लेते है। देवताओंका आहार दो प्रकारका है। आभोग निर्वर्तित और अनाभोग निर्वर्तित। आभोग निर्वर्तित अर्थात ज्ञानपूर्वक आहारकी अभिलापा, कमसेकम एक दिवस के पश्चात और अधिकसे अधिक सहस्र वर्ष से अधिक समय पश्चात होती है। अनाभाग निर्वर्तित अर्थात् अज्ञानता से इप्सित आहारकी अभिलापा देवों की निरंतर होती है।
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(६) वाहनः
देवोंकं वाहन अनेक प्रकार के होते हैं यथा हाथी, घोडा, बैल, भैसा, शेर, हिरण, सर्प, मोर, हंस, गरुड आदि । किन्ही किन्ही देवताओ के वाहन गधा और कुत्ता भी है।
(७) अवधिज्ञानः
देवता अवधिज्ञानसं तीनों कालकी बात जानते हैं । भवनपति और व्याणव्यन्तर देवोंका अवधिज्ञान उर्ध्वदिशामें अधिक होता है। ज्योतिपी देवताओंका अवधिज्ञान तिरछी दिशामें अधिक होता है। वैमानिक देवताओंका अवधिज्ञान अधोदिशामें अधिक होता है। पहले दुसरे देवलॉ देवता पहली नरक तक देख सकते हैं, तीसरे, चौथ 'देवलॉ' देवता दुसरी नरक तक, पांचवे छटे देवलों' देवता तीसरी नरक तक, सातव आटव देवला' देवता चौथी नरक तक, नववं, दसवें, ग्यारहवे बारहवे देवलो' देवता पाचवी नरक तक देख सकते हैं तेरहवे से अटारवे देवलो' देवता छटी नरक तक देख सकते है । उन्निससे इक्किसवं देवला देवता सातवी नरक तक देख सकते है। बावीससे पच्चीसवे देवला देवता अधोदिशामें कुछ न्युन सवकुछ देखते हैं। पाचवे अनुत्तर विमानवासी देवता अधोदिशामें सबकुछ देखते हैं तात्पर्य यह हैं की भवनपति और व्याणव्यन्तरमें जघन्य अवधिज्ञान होता हैं, पाच अनुत्तर विमानोमें उत्कृष्ट अवधिज्ञान होता है । द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावकी अपेक्षासे देवोके अवधिज्ञान के असंख्य भेद जिनवाणीमें कहे गये है।
૨૬ - ૧૯મી અને ૨૦મી સદીના જૈન સાહિત્યનાં અક્ષર-આરાધકો