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________________ यंत्रो के दोनो प्रकार, नवपदी के गट्टो का परिचय देकर, 'यंत्र क्या वस्तु है', 'यंत्र का देह कैसे बनता है' 'यंत्र विज्ञान और उसकी महिमा', 'यंत्र विद्या', 'यंत्रो के विविध उपयोग' आदि का सुंदर विवेचन किया है। केन्द्रवर्ती विशिष्ट कोटि के केन्द्रीय वीज के क्रम को सुस्पष्ट किया है | प्रथम वलय में 'स्वाहा' अवश्य होना चाहिये, दूसरे वलय में 'नमो अरिहंताणं' के साथ ॐ नहीं होना चाहिये आदि अनेक संशोधन प्रमाणित किये हैं । यंत्र में सालंबन अनाहत कहाँ और निरालंबन अनाहत कहाँ होना चाहिये इसका सूचन किया है। फिर जयादि देवियों के वलय, अधिप्टायक के वलय के बारे में स्पष्टीकरण किया है | आँख और खेस क्यों बनाये जाते हैं इसे समझाया है। इस तरह अनेक विशेपताओं से युक्त सवींग संपूर्ण यंत्र आ.श्री के संशोधन से जैन समाज को प्राप्त हुआ । सिद्धचक्र यंत्र पूजन एक सर्वेक्षण और समीक्षा' का लेखन एवं सं. २०४९ में इसकी दूसरी आवृत्ति का प्रकाशन हुआ है । पूजनविधि में भूलसुधार के निर्देश देते हुये केन्द्रवर्ती १६ स्वरों के बारे में, अनाहतों के पूजन के बारे में चर्चा की है । 'शर्करा लिंग' के सत्यार्थ की अज्ञानता के कारण चली आ रही अविधि का निवारण भी किया है | चार अधिष्ठायक की पूजा 'कोडो' से ही करनी चाहिये उसका स्पष्टीकरण किया है । शांतिकलश के दण्डक में २५ वर्प से चली आ रही क्षति का भी निवारण किया है । प्रस्तावना संग्रह : आचार्यश्री के मन में एक क्रांतिकारी विचार का उद्भव हुआ कि यदि उनके द्वारा लिखी गई प्रस्तावनाओं का संग्रह प्रकाशित किया जाये तो उनके द्वारा साहित्य एवं कला क्षेत्र में जो कार्य हुआ है उसकी झलक सचिवान व्यक्तिओं को एक ही ग्रंथ में प्राप्त हो सकती है | उनके सुपरिचित विद्वानों, लेखकों एवं वाचकों ने उसका उत्साह-पूर्वक स्वागत किया । वि.सं. २०६२ सन् २००६ में पृष्टसंख्या २७+८२० के साथ प्रकाशित यह दलदार ग्रंथ एक नया आयाम कायम करता है । इसमें उनके द्वारा विविध विषयो पर रचित / संपादित ७७ पुस्तकों में लिखी गई प्रस्तावनाओं का समावेश है । ___'प्रस्तावना संग्रह' की प्रस्तावना में आ. श्री विजयपूर्णचन्द्रसूरीश्वरजी महाराज साहेब लिखते है कि उनके मतानुसार प्रस्तावनाओं का विभागीकरण करें तो इस ग्रंथ में आगमसूत्रो, प्रकरणो, स्तुति-स्तोत्रो, इतिहास, जीवन-चरित्र, प्रभुजीवन, प्रतिक्रमण, संगीत-नाट्य, पूजा-पूजन, ज्योतिप, कोश, प्रवचन, पत्रसंकलन, ऐतिहासिकं संशोधन, संस्कृत पाट्यग्रंथ, शिल्पकला, संस्मरण, चित्रपट-आल्वम, विचारणीय प्रश्नो, आदि विविध विषयों को स्पर्शती हुई प्रस्तावनायें हैं । પ૨૬ + ૧૯મી અને ૨૦મી સદીના જૈન સાહિત્યનાં અક્ષર-આરાધકો
SR No.023318
Book TitleJain Sahityana Akshar Aradhako
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMalti Shah
PublisherVirtattva Prakashak Mandal
Publication Year2016
Total Pages642
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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