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________________ इस ग्रंथ में १४ राजू लोक (अखिल ब्रह्माण्ड) में चारो गति में एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय पर्यंत सभी जीवों का विविध प्रकार से वर्णन करने की अनुकूलता रहे इसलिये पहली ही गाथा में नव द्वारों का उल्लेख किया है । __ प्रथम 'स्थिति' द्वार में प्रत्येक भव में प्रत्येक जीव के जघन्य एवं उत्कृष्ट आयुष्य की वर्णन किया है। दूसरे “भवन' द्वार में देव और नारकी जीवों के उत्पन्न होने के स्थानों का वर्णन है। तीसरे 'अवगाहन' द्वार में जीवों के जघन्य और उत्कृष्ट शरीर का परिमाण दिया है। चौथे 'पपात विरह' द्वार में एक जीव के उत्पन्न होने के बाद दूसरा जीव कितने समयांतर पर उत्पन्न होता है उसका जघन्य एवं उत्कृष्ट अंतर दिया है । पाँचवे 'च्यवनविरह' द्वार में एक जीव की मृत्यु के वाद दूसरा जीव कब मत्यु को प्राप्त होता है उसका जघन्य एवं उत्कृष्ट अंतर दर्शाया है । छटे 'पपात संख्या' द्वार में देव आदि गतियों में एक समय में एक साथ कितने जीव उत्पन्न होते हैं उसका वर्णन है। सातवें 'च्यवन संख्या' द्वार में देव आदि गतियों में एक समय में एक साथ कितने जीव मृत्युको प्राप्त होते हैं यह दर्शाया है । आटवें ‘गति' द्वार में कौन सा जीव मृत्यु को प्राप्त होने के पश्चात् किस गति में उत्पन्न होता है उसका वर्णन है । नवें 'आगति' द्वार में देवादि गतियों से किस-किस गतियों में जीव आता है उसका वर्णन है । तीनों लोकों में जीवों के परिभ्रमण की सूक्ष्म एवं स्थूल वातों पर यह ग्रंथ एक संदर्भ ग्रंथ की तरह है | दृश्य-अदृश्य विश्व-व्यवस्था, भूगोल, खगोल, स्वर्ग, मृत्यु और पाताल इन तीन लोकों से संवद्ध आकर्पक विषयों का इसमें समावेश है । चक्रवर्ती का वर्णन, सिद्धशिला, वासुदेव, उत्संधांगुल, प्रमाणांगुल की व्याख्या, आयुष्य के प्रकार, पर्याप्ति के प्रकार, विविध प्रकार के शरीर आदि का स्वरूप, इस प्रकार छोटे-बडे अनेकानेक विषयों को इस ग्रंथ में गूंथ लिया है । इस पूरे ग्रंथ का अंग्रेजी में भी अनुवाद किया गया है | 'उपाध्यायजी की स्वहस्तलिखित और अन्य प्रतियों के आद्य एवं अंतिम पत्रों की ५० प्रतिकृतियों का आल्बम' : आचार्यश्री की स्वरचित एवं संपादित कृतियों की शृंखला में यह एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण एवं अनूटी कृति है । सत्रहवीं सदी के उत्तरार्ध के जैनशासन के परम प्रभावक, समर्थ तत्त्वचिंतक, असाधारण कोटि के तार्किक विद्वान, न्याय विशारद, न्यायाचार्य महोपाध्याय श्रीमद् साहित्य कलारत्न श्री विजय यशोदेवसूरि + ५१८
SR No.023318
Book TitleJain Sahityana Akshar Aradhako
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMalti Shah
PublisherVirtattva Prakashak Mandal
Publication Year2016
Total Pages642
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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