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'अमावसा' शब्द पर एक वर्ष में बारह अमावस्यों का निरुपण, अनेक नक्षत्रों का योग तथा कितने मुहूर्तों के जाने पर अमावस्या के वाद पूर्णमासी और पूर्णमासी के बाद अमावास्या आती है इत्यादि विषय है।
'अहिंसा' - इस शब्द पर अहिंसा की व्याख्या, अहिंसा का विवेचन, अहिंसा का लक्षण, अहिंसा पालन करने में उद्यत पुरुषों का कर्तव्यादि में हिंसा करने पर विचार, जैनियो में उच्च अहिंसा का प्रतिपादन, आत्मा के परिणामी होने पर भी हिंसा में अविरोध का प्रतिपादन आदि विषयों पर अच्छा विवेचन किया हैं।
__ प्रथम भाग में जिन-जिन शब्दों पर जो-जो कथायें, उपकथायें आई है उनका भी अच्छा दिग्दर्शन कराया गया है।
अभिधान राजेन्द्र कोष का द्वितीय भाग
मंगलाचरण सिरिवद्वमाणवाणिं, पणमिअ भत्तीइ अक्खर कमसो।
सद्देतेसुय सव्वं, पवयणक्तव्वयं वोच्छं॥ इस दूसरे भाग का प्रारम्भ 'आ' इस अक्षर से किया गया है। इस भाग में आ, इ, ई, उ, ऊ इन पांच अक्षरों से प्रारम्भ होने वाले शब्दों पर खूब विचारपूर्वक विवेचन किया गया है। ___'आ' वर्ण पृष्ठ क्रमांक एक से शुरु होकर 'आहोहिय' (आभोगिक) शब्द के साथ पृष्ठ क्रमांक ५५६ पर समाप्त होता है। 'इ' वर्ण पृष्ट क्रमांक ५५७ से शुरू होकर पृष्ट क्रमांक ६७९ पर, 'ई' पृष्ठ क्रमांक ६७९ से 'इदिय' (ईक्षित) शब्द के साथ पृष्ट क्रमांक ६८५ पर समाप्त होता है। 'उ' वर्ण पृष्ठ क्रमांक ६८६ से पृष्ट क्रमांक १२०८ पर। 'उहटुः अव्यय के साथ पूर्ण हुआ हैं। 'ऊकार' पृष्ट क्रमांक १२०९ से शुरु होकर 'ऊहापन्नत' (ऊहाप्रज्ञप्त) शब्द के साथ पृष्ट क्रमांक १२१५ पर समाप्त हुआ हैं।
द्वितीय भाग में भी अनेक शब्दों का विवेचन किया गया हैं कुछ शब्दों की जानकारी निम्नलिखित है।
'आ' (आयु) के भेद, आयु का निरुपण, आयु की पुष्टि के कारण और उनके उदाहरणादि दिये है। 'आउकाय' शब्द पर अप्कायिक जीवों का वर्णन भेद आदि।
आउट्टि' शब्द पर चन्द्र-सूर्य की आवृत्तियां किस ऋतु में और किस नक्षत्र के साथ कितनी होती है यह विषय देखने योग्य है।
'आगम' - शब्द पर लौकिक और लोकोत्तर भेद से आगम के भेद, आगम का परतः प्रामाण्य, आगम के अपौरुषत्व का खण्डन, आप्तो द्वारा रचे हुए ही आगमो का प्रामाण्य, मोक्ष मार्ग में आगम ही प्रमाण है, जिनागम का सत्यत्व प्रतिपादन
श्रीमद् राजेन्द्रसूरिः ओक महान विभूति की ज्ञान अवं तपः साधना + ४१३