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२०० वर्ष पूर्व पंजाब की धरती पर अवतरित हुए ।- मुनिराज श्री बुद्धिविजयजी(बूटेराय)जी
महाराज (सन् १८०६-१८८१)
• महेन्द्रकुमार मस्त
શ્રી મહેન્દ્રકુમારજી મસ્ત પંજાબના રહેવાસી અને પંજાબકેસરી પ.પૂ.આ. શ્રી વિજયવલ્લભસૂરિજીને ખૂબ નિકટથી જાણતા. તેઓએ લખી મોકલેલ પૂ. મુ. શ્રી બુટેરાયજી મહારાજના જીવન અંગેનો આ નાનકડો પરિચયાત્મક લેખ છે. શ્રી મહેન્દ્રકુમારજી અવારનવાર લેખો અને પુસ્તકો દ્વારા સાહિત્યસેવા કરી રહ્યા छ. - सं.]
‘राज तो अंग्रेज का है, इन लोगोंका तो नहीं है। कोई तो माई का लाल इनको भी पूछने वाला निकल ही आवेगा, जो यह यह सोचेगा कि मैंने क्या अपराध किया है, जो मेरा वेश छीना जा रहा है। जो कुछ होगा, सामने आवेगा तब देख लेंगे।' ये शब्द मुनि पुंगवश्री बूटेरामजी महाराजने अपनी स्वलिखित आत्मकथा में लिखे है। घटना अंबाला शहर की है, जब वहां उनका वेश उतरवाने का षडयंत्र रचा गया। उन्हें तरह तरह की धमकियां दी गई। ऐसे समय में भी, नही वे डरे, नही धैर्य छोडा।
आचार्य विजयानंदसूरि - आत्मारामजी: श्री वृद्धिविजयजी (श्री विजयनेमिसूरि समुदाय); एवं श्री मुक्तिविजय - मूलचंदजी (त्रिपुटी समुदाय), के दीक्षागुरु एवं पूर्वगामी मुनि श्री बूटेराय (बुद्धिविजयजी) जिन के जन्म को आज दो सौ वर्ष पूर्ण हो चुके है, वे पंजाब के सरहिंद क्षेत्र के 'दलुआ - साबखान में जमींदार टेकसिंह गिल के घर इस्वी सन् १८०६-०७ को पैदा हुआ तथा २५ वर्ष की आयुमें स्था. मुनि श्री नागरमल के पास (ई. १८३१) दिल्ली में दीक्षा लेकर उनके शिष्य बने।
___ सत्य की खोज कोई सामान्य कार्य नहीं था। इसी खोज में मुनि बूटेरायजी जोधपुर में जाकर तेरापंथी मुनि जीतमलजी से मिले और सन् १८३४ का चौमासा उनके साथ वहीं पर किया। यहां पर भी उन की खोज की संतुष्टि न हुई तो वे वापस दिल्ली में अपने गुरु के पास आ गए।
मुनिराज श्री बुद्धिविजयजी(बूटेरायाजी महाराज + २८३