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________________ 'श्री पद्मनंदि पंचविंशतिका' के आधार पर 'धर्मोपदेशामृत', आ. कुंदकुंद देव के ‘पंचास्तिकाय प्राभृत' के आधार पर 'पंचास्तिकायसार' एवं 'प्रवचनसार' की गाथाओं के आधार पर 'सर्वज्ञ के ज्ञान का माहात्म्य' का सुंदर परिशीलन किया है। तत्पश्चात् 'धरती के देवता', 'सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति के कारण', 'जैनशासन में कर्मसिद्धान्त' को सरल भाषा में समझाया गया है। इसके बाद ‘साधु और श्रावक दोनो ही सल्लेखना ग्रहण कर सकते हैं', 'ब्राह्मी-सुंदरी ने दीक्षा क्यों ग्रहण की थी', 'सम्मेदशिखर तीर्थवन्दना माहात्म्य', 'दीपावली पर्व एवं निर्वाण संवत्का 'नूतन वर्षाभिनंदन', 'आगम के दर्पण में कुण्डलपुर', 'स्वसमय-परसमय', 'अक्षय तृतीया पर्व', 'नारीकी गरीमा', ऐतिहासिक आर्यिकायें', 'पंचकल्याणक प्रतिष्ठाका महत्त्व', 'समवसरण का वर्णन', 'वीरशासन दिवस', 'जीवदया परमधर्म है', 'महासती चंदना', 'जैनशासन में ध्वज परंपरा' जैसे विविध विषयों पर ज्ञानसभर लेखों का समावेश है। तत्पश्चात् 'षटखण्डागम ग्रंथ की सिद्धान्त चिन्तामणि टीका' लेखन संबंधी संक्षिप्त विवरण पाठकों की जानकारी के लिये दिया है। श्री अजित ब्रह्मदेव कृत प्राकृत 'ल्याण आलोयणः' एवं श्री पद्मनंदि आचार्य विरचित 'पद्मनदि पंचविंशतिका' में से ‘यति भावनाष्ट' के संस्कृत श्लोकों का सुंदर हिंदी पद्यानुवाद भी इस ग्रंथ में समाविष्ट है। अंत में श्री उमास्वामी विरचित १२ श्लोकों में निबद्ध संस्कृत स्तुति ‘णमोकार मंत्र माहात्म्य' का अत्यंत सरल भाषा में शंभु छंद में रचित पद्यानुवाद स्तोत्र और अपराजित ८४ लाख मंत्रो का जनक. अचिंत्य महिमा यक्त णमोकार मंत्र पर अत्यंत मननीय लेख है। अंत में आठ पद्यों में प्रशस्ति देकर ग्रंथ को पूर्ण किया है। ज्ञानामृत भाग ३ का प्रारंभ ‘सरस्वती स्तोत्र' से किया। प्रतिष्ठा-तिल' ग्रंथ में वर्णित इस सरस्वती स्तोत्र में 'द्वादशांग जिनवाणी' की स्तुति की गई है। प.पू. माताजीने इसका बहुत ही सुंदर पद्यानुवाद किया है। फिर 'अनादि तीर्थ अयोध्या', 'भगवान शांतिनाथ', 'अंतिम तीर्थंकर महावीर', 'मनुष्यलोक' आदि लेख 'तिलोयपण्णत्ति', 'त्रिलोकसार', 'तत्त्वार्थवार्तिक', 'कषायपाहुड', 'उत्तर पुराण', 'जम्बूद्वीपपण्णति' आदि पूर्वाचार्य प्रणीत प्राचीन ग्रंथो के उद्धरणों के साथ लिखे गये हैं। तत्पश्चात् ‘सप्तव्यसन त्याग', 'मूलाचार सार उत्तरार्ध', 'नियमसार का सार', 'अष्टसहस्री सार', 'नन्दीश्वर द्वीप', 'रत्नत्रयधर्म' विषय पर लिखे गये लेखों का समावेश है। तदनंतर आ. पद्मनंदिकृत ‘पद्मनंदि पंचविंशतिका' ग्रंथ के “एकत्व सप्तति' अधिकार को भावार्थ विशेषार्थ आदि के द्वारा सुस्पष्ट किया हैं। ___ 'आगम दर्पण' के लेख में 'पंचामृत अभिषेक के प्रमाण, चन्दनपूजा का महत्त्व, अष्ट-द्रव्य से पूजा, स्त्रीयों द्वारा जिनाभिषेक प्रमाण, श्रावक के संस्कार, शासन देवदेवी आदि के प्रमाण, भावसंग्रह - पद्मपुराण - हरिवंश पुराण - कसाय पाहुड - षट पाहुड - आदिपुराण - प्रतिष्ठा सारोद्धार आदि अनेक ग्रंथो के आधार से ૨૭૪ - ૧૯મી અને ૨૦મી સદીના જૈન સાહિત્યનાં અક્ષર-આરાધકો
SR No.023318
Book TitleJain Sahityana Akshar Aradhako
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMalti Shah
PublisherVirtattva Prakashak Mandal
Publication Year2016
Total Pages642
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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