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________________ द्वारा चर्चा और निराकरण प्रस्तुत किये। गरीबी, अभाव एवं भ्रष्टाचार आदि का समाधान अर्थव्यवस्था परिवर्तन में न खोज कर हृदय परिवर्तन एवं स्वभाव परिवर्तन में खोजा। इनका हल अपरिग्रह, अहिंसा और विसर्जन में पाया। हर सामाजिक व्यक्ति संविभाग का अधिकारी होता है। विसर्जन न दान है और न व्यवस्था। यह तो हिंसा क्रूरता एवं विलास को रोकने का व्यक्तिगत संयम का प्रतिफल है। ___आपके संदेश आपकी उच्च कोटि की मानसिकता के परिचायक है। 'अशांत विश्व को शांति का संदेश में आपने विश्वशांति के उपायों को बताते हुए 'सम्यकत्व' की बात बताई। इस संदेश का विश्व स्तर पर काफी स्वागत हुआ। इसी तरह 'धर्म सन्देश' और 'धर्म रहस्य' के माध्यम से आपने बताया कि मानवीय समस्याओं से निपटने के लिए धर्म का उपयोग हो सकता है। राजस्थानी भाषा आपकी मातृभाषा होने के कारण उस पर पूर्ण अधिकार था। इस भाषा में आपने कई पुस्तकें लिखी। गलूयशोविलास' राजस्थानी साहित्य का उत्कृष्ट उदाहरण है। गुजराती व थली भाषा पर भी आपका अधिकार था। इस प्रकार विभिन्न भाषा में साहित्य लिखकर धार्मिक एवं आध्यात्मिक तत्त्वों द्वारा ईर्ष्या, मात्सर्य, राग-द्वेष, विषमता एवं युद्ध की विभिपीका से हताहत मानव में अहिंसा, समता, प्रेम, सहिष्णुता आदि मानवीय मूल्यों को स्थापित कर सुप्त मानस को जगाया। प्राच्य विद्या की अनमोल धरोहर आगम सम्पादन का भगीरथ कार्य आपके नेतृत्व में सम्पन्न हुआ। देवर्धिगणी के वाद लगभग १५०० वर्षों बाद आपके वाचना प्रमुख में सम्पादन का यह महनीय कार्य प्रारम्भ हुआ। कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व ही आपने अपने शिष्यों को यह कड़ा निर्देशन दिया कि गवेषणा कार्य पूर्णतया निष्पक्ष भावना से किया जाय, उसमें सम्प्रदाय की दृष्टि प्रधान नहीं होनी चाहिए। मौलिक अर्थ की प्रस्तुती की जावे। इसी आसाम्प्रदायिक दृष्टि से किया गया दश वैकालिक सूत्र देखकर ही पंडित प्रवर सुखलालजी सिंघवी ने कहा, 'जैन आगमों और जैन दर्शन का कार्य आचार्य तुलसी ही कर सकेंगे, एसा मुझे विश्वास हो गया है।' सबसे पहले जैनागम शब्द कोष का निर्माण एवं हिंदी अनुवाद का कार्य प्रारंभ किया गया। इस कार्य के निष्पादन में अनेक कठिनाईयों का सामना करना पड़ा। सबसे बड़ी समस्या तो मूल पाट के संशोधन की थी। व्याप्त लिपि दोष तथा दृष्टि दोष के कारण पाठ भेद आ गये थे, जिनके कारण मूलपाठ ढूंढ निकालना सहज कार्य नहीं था। वाचना की अनेकता एवं परम्परा का मौलिक स्रोत उपलब्ध नहीं होने से अर्थभेद हो गया था। उपलब्ध टीका आदि भिन्न-भिन्न आचार्यों द्वारा लिखे जाने के कारण सूत्रों का मौलिक आशय पकड़ना जटिल एवं उत्तरदायित्व पूर्ण कार्य था। संकल्प फलवान हुआ। एक वर्ष में लगभग २०-२५ आगमों की सूचियां आचार्य श्री तुलसी के साहित्यिक अवदान + १८७
SR No.023318
Book TitleJain Sahityana Akshar Aradhako
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMalti Shah
PublisherVirtattva Prakashak Mandal
Publication Year2016
Total Pages642
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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