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भारत में भारत में टूटे फूटे और फटेहाल पंजाबी गुरू भक्तों को आपने ढाढस बंधाया। दैनिक अखबारों में शांति और सहायता की अपीलें छपाई। गुजरात आदि में विराजमान पूज्य जैनाचार्यों को पत्र लिखे। आचार्य श्री सागरानंदसूरिजी तब पंजाबीयों के पुनर्वास व सहायता के लिओ ७८००० की सहायता भिजवाई थी।
बंबई में बंबई में विराज रहे श्री विजयवल्लभ के हर स्वांस में 'मेरा पंजाब, मेरा पंजाब' की आवाजें ही निकलती थीं। तभी कहा - 'मेरी हार्दिक इच्छा तो यह है कि इस चातुर्मास के बाद, पालीताना की यात्रा करूं, और वहां से विहार करके पंजाब जाऊँ। जीवन की अंतिम सांसें पंजाब में पूरी करूं, और वहां की माटी में इस शरीर का विसर्जन करू।' बम्बई के महावीर विद्यालय में अपनी इन भावनाओं को व्यक्त करते हुए, गुरूदेव सेठ कान्तिलाल ईश्वरलाल के मैरीन ड्राईव स्थित बंगले में पधारे। बंबई से पंजाब की ओर विहार की इस पहली कडी में आसोज वदि दशमी (२०११ विक्रमी) को शाम के समय में प्रतिक्रमण आदि से निवृत होकर, पूज्य गुरूदेव थोडा विश्राम कर रहे थे। सेठ श्री कांतिलाल व उनके परिवार के अन्य सदस्यों ने गुरूदेव के पांवों को दबाया व विश्राम दिलाया। पूज्य मुनि जनकविजयजी आदि साधु महाराज भी पास विराजमान थे। तब तक रात्री हो गई थी।
अचानक गुरूदेव का स्वांस कुछ उखडने लगा। गुरूदेव वृद्ध तो थे पर अन्तर से सचेत, जागृत व आत्मरत् थे। अगले क्षणों के प्रति भी वे पूरे जागरूक थे। तभी उन्हें, अपने परम गुरू श्री विजयानन्दसूरि के उस आवह्न का ख्याल आया जिसमें 'वल्लभ, मेरे पंजाब को संभालना। इन पंजाबियों की रक्षा करना' और इसी सोच में अपने उखडते हुए स्वांसों में ही उन्होंने रात्रि दस बजे के आसपास सेठ कांतिलाल को कहा कि गेई पंजाबी इधर आसपास हो तो उसे बुलवाना।' सेठ साहिब के परिवार जन इधर-उधर भागे, फोन किए। आखिर करीब ११-१२ बजे एक पंजाबी जैन भाई मिले तो उन्हें गुरूदेव के पास लेकर आए।
दय और स्वांस अब तक और भी उखड रहे थे। एमनीसिया की सी स्थिति हो गई थी। अभी कुछ याद है, अभी कुछ याद नहीं। ऐसी स्थिति में गुरूदेव श्री जी को यह याद आना कठिन हो रहा था कि उन्होंने क्या कहने के लिए एक पंजाबी श्रावक को अपने जीवन की इस अंतिम वेला में बुलाया था। पास बैठे डॉक्टरों ने भी मना कर दिया कि गुरूदेव को ज्यादा न बुलाया जाए। रात्रि के अढाई बज गए। गुरूदेव अमर हो गए। और उस समय के सब से बडे मीडिया ओल इण्डिया रेडियो और बी.बी.सी. (हिंदी) से प्रातः ८ बजे गुरूदेव के काल धर्म का समाचार प्रसारित हुआ।
૮૬ ૧લ્મી અને ૨૦મી સદીના જૈન સાહિત્યનાં અક્ષર-આરાધકો