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तरह, पार्श्वनाथ पंच कल्याणक पूजा के प्रत्येक स्तवन में श्री शुभ विजय श्री वीरविजय नाम जोडा गया है -
__'श्री शुभ वीर वचन अनुसारे, पंच कल्याणक गाया' नंदीश्वरद्वीप पूजा में.... वीर विजय अनुसारी ने -
श्री विजय वल्लभ की आचार्य पदवी से पूर्व की रचनाओं (पूजाओं) में श्री विजय कमलसूरि का योग्य नाम आदर पूर्वक आया है। यह उन के चरित्र की महानता है कि अपनी आचार्य पदवी से पूर्व की रचनाओं को उन्होंने यथावत् ही रहने दिया।
शास्त्रों के संदर्भ व आधार देकर भी उन्होंने किसी संभावित त्रुटि के लिए क्षमा याचना करते हुए कहा -
'सुधारी भूलचूक लेवे, सज्जन मोहे माफ कर देवे'
छोटी-छोटी व साधारण समझी जाने वाली वातों को भी दृष्टि से ओझल न किया। दैनिक जीवन में 'कम खाना और गम खाना' का उपदेश दिया। व्यवहार धर्म की शिक्षा देते हुअ श्रावक को संबोधन करते हुओ कहा -
* 'श्रावक सो उठे प्रभात्
चार घडी ले पिछली रात * गुरू के सामे बैठे विधि सुं, लंबे पांव न करिये पांव के ऊपर पांव चढावे,
तो अशातना कहिये। * अजाना फल और रात्री भोजन,
तिन का कबहुं न करिये सेवन। * पाथी ईंधन चुल्हा देखे,
शोधे अन्न को नारी, * तेल तक्र धृत दूध को ढकिये,
पानी दहीं खुला न रखिये। * छहो तिथि आरम्भ न करिये, ब्रह्मचर्य को धरिये * सर्व पाप के तुल्य है, मदिरा मांसाहार * पर के मांस से अपने मांस को, नीच पुरुष पोषण करता, जिम सुअर गंदगी में रुलता, फिरता गली मंझार जी। (मदिरा पान)
आचार्यश्री विजयवल्लभसूरि व्यक्तित्व-कवि-काव्य + ८३