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* सार्थवाह जगनाथ शिवंकर, जग बांधव जगदेव सुहंकर
वीतराग-प्रभु जगगुरू शंकर, नमिये ज्ञानानंदजी दर्शन धार। * जिनवर ब्रह्मा शंभु मुरारी, आतम लक्ष्मी हर्ष अपारी। * हरि विरची वीर बुद्ध शंकर
राम ऋषभ सुखकारी • सीता माता जग गाता। रुपये पैसे व भौतिक समृद्धि की अंधी दौड को 'कलदार' कहकर बहुत सुंदर भाव मुखरित हुओ हैं -
मन मोहे टनन-टनकारा, इक देखा अजब नजारा पास होवे कलदार जिसके, वो ही जगत सरदारा। कलदार जे. पी. कलदार नाइट, कलदार मामलत दारा कलदार गाडी, कलदार वाडी, कलदार होटल सारा कलदार विद्या, कलदार हुन्नर, कलदार खिदमतगारा,
कलदार कुर्सी, कलदार गादी, कलदार बैठन हारा। श्री केसरिया नाथ तीर्थ के प्रभु को स्थानीय भील लोग कालिया वाबा कहकर पुकारते है। विजयवल्लभ भी उन के दर्शन से मुग्ध होकर कह बैठे -
* चोर अपूर्व तू जगनामी, काला विरूद धराया जी
चोर हरे विन देखे, मुझ मन देखत तुमने चुराया जी पंजाब में प्रचलित सूफी कलाम के अनुरूप -
• विछोरा किया जिन तेरा...
यार अपने को ढूंढता फिरा जग में बहु, मिला नहीं कहीं मुझे, संग कुमता परी ने। • जिन प्रतिमा जिन सारखी मानो, * पूजा करत जोई, सफल हाथ सोई,
देखे प्रभु को जोई, सफल आंख वोई, काव्यों में गुजराती की मिठास, पंजावी का लावण्य, उर्दू फारसी का माधुर्य, राजस्थानी का सारल्य, ब्रज का लालित्य और संस्कृत का सौंदर्य सहज में आ गया है। शब्दों का अनुप्रास देखें -
कंद नंदा, नंद चंद नंदा, नंदन श्री जिनंद
तार तारक तरण तारण, धार धारक गुणकर शास्त्रीय और लोक संगीत दोनों के अनूठे प्रयोग विजय वल्लभ ने अपने
आचार्यश्री विजयवल्लभसूरि व्यक्तित्व-कवि-काव्य + ८१