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साध्वी उत्थान का युगाँतरकारी संदेशः आचार्य विजयवल्लभ ने जो युगाँतरकारी संदेश, अपने जीवनकाल में दिया, उसके अनुसार वे चाहते थे कि हमारे साध्वी समाज को ज्ञानार्जन तथा व्याख्यान वाचन की समुचित सुविधा दी जानी चाहिए, क्योंकि तीर्थंकर भगवान द्वारा प्रतिपादित संघ का वे एक अंग है। बौद्ध प्रभाव तथा मुस्लिम शासन काल में केवल धार्मिक क्रियाएं करना या तपश्चर्य करना ही साध्वियों का मुख्य कार्य रह गया था। इससे साध्वी व श्राविका - दोनों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। उन्होंने कहा – 'साध्वी समाज को भी भगवान महावीर की वाणी को सुनाने और प्रचार करने का अधिकार है। उन्हें सूत्रो-शास्त्रों के पढने का भी उतना ही हक है, जितना साधु समाज को।' आगे कहा - 'यदि हमारी साध्वी समाज के लिए ज्ञानार्जन की समुचित व्यवस्था समाज द्वारा की जाए, तो उससे हमारा साध्वी समाज तो जागृत होगा ही, पर उसके साथ-साथ श्राविका समाज का भी उत्कर्प होगा
और अक सुव्यवस्थित सुदृढ आचारयुक्त समाज का निर्माण होगा।' विजयवल्लभ की सशक्त वाणी से समाज में चेतना का संचार हुआ और साध्वियों के अध्ययन की व्यवस्था की गई। खरतरगच्छीय साध्वी विचक्षण श्री जी को 'जैन कोकिला' पदवी से सुशोभित करना और अपनी ही आज्ञानुवर्तिनि महत्तरा साध्वी मृगावती श्री जी को सूत्र-वांचन की आज्ञा देना उनके युगांतरकारी कार्य बने।
नारी शिक्षा व जागरण के लिए भी जगह-जगह कन्या-शालाएँ व गज स्कूल खुलवाए। उनके द्वारा स्थापित कालेजों में भी लडकियों के दाखिले को खोला गया।
आधुनिक नारी मुक्ति के विषय को आध्यात्मिक दृष्टिकोण से उठाकर, 'राजीमति रहनेमि' और 'जम्बूस्वामी' गीत-नाटिकाओं में नारी के शील-सौंदर्य और उसकी अद्भुत अन्तशक्तिका वर्णन हुआ है। वह अपनी शक्तिसे चरित्रभ्रष्ट युवाजन को सन्मार्ग पर लाने में सक्षम है तथा समाज में सत्यं शिवं सुन्दरम की अधिष्ठात्री है। अपनी कविताओं में कहा -
... 'चमक दमक अति पातला, वस्त्र धरे नहीं अंग ... काम दीपावन भूषण दूषण, अंग विभूषण टारी'
कवि और काव्यत्व आचार्य विजयवल्लभ द्वारा रचित कविताएँ, दोहे, गीत, भजन व स्तवनादि को समझने परखने से पहले उस युग की सामाजिक, धार्मिक व राजनैतिक परिस्थितियों तथा लोकभाषा का थोडा अध्ययन करना आवश्यक होगा।
राजनीतिक क्षेत्र में कांग्रेस के जन्म के बाद विप्लववादी आँदोलन बंगाल व पंजाब में चल रहे थे। पढे-लिखे लोग विदेशों में जाकर भारत की स्वतंत्रता के छुटपुट प्रयास कर रहे थे। बंगाल विभाजन, प्रथम विश्वयुद्ध तथा जलियांवाला काण्ड के बाद गाँधीजी का एक शक्तिशाली व्यक्तित्व के रूप में पदार्पण, ये सब
૭૨ + ૧૯મી અને ૨૦મી સદીના જૈન સાહિત્યનાં અક્ષર-આરાધકો