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श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथाय नमः प्रस्तावनाना बे बोल
mmimm असे तो जैन जगत में साहित्य की कोई कमी नहीं है, और आये दिन नूतन साहित्य बाहर पड़ता ही जा रहा है, फिर मी आजके युग में सरल एवं सुबोध भाषा में बैसे साहित्य की पूर्ण आवश्यकता है जो कि आबालवृद्ध सब के समान उपयोगी बन सकें। इस दृष्टि से यह पुस्तक महान उपयोगी सिद्ध होगी, चूंकि इस में करीब करीब सब विषयों का “गागर में सागर की भांति" समावेश करने का पूर्ण प्रयत्न विदुषी साध्वीजी श्री जितेन्द्रश्रीजीने किया है, अतः आपको साधुवाद देता हुआ मैं यह आशा करता हूं कि पाठक महोदय इस से यथेष्ट लाभ उठायेंगे।
प्रस्तुत पुस्तक के दान दाताओं को भी इस समय हार्दिक धन्यवाद देना नहीं भूल सकता।
अन्त में साध्वीजी से भी अनुरोध करूंगा कि भविष्य में भी इसी तरह के सरल साहित्य का निर्माण करते हुए जैनशासन की सेवा में अपने जीवन को लगाये रखें । यही शुभेच्छा !!!
श्री हिमाचलान्तेवासी, मुमुक्षु भव्यानन्दविजय च्या० साहित्यरत्न.