SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ૬૯ समरसिंह । का जिसके ऐसे गुणी पुत्र उत्पन्न हुए हों ! इनकी धार्मिकवृति के प्रताप से कलियुगके सारे पाप काँपने लगे । तीनों पुत्र मानों तीनों लोकों के सारभूत थे । जेष्ठ पुत्र का नाम सहज, I साहण और सब से छोटे का नाम समरसिंह था । तीनों 'पुत्ररत्न साहसी, सुन्दर, शूरवीर, सहनशील, और कुल के शृङ्गार थे । इनमें से तृतीय, जो हमारे चरितनायक हैं, तो विशेष चमत्कारी 1 थे । इनकी बुद्धि, वैभव और भाग्य, अभ्युदय की पराकाष्टा तक पहुँचा हुआ था । इस लोहे की लेखनी का परम सौभाग्य और अभिमान है कि जिसके द्वारा ऐसे दानवीर नररत्नों का चरित अंकित कर आज हम हिन्दी संसार के समक्ष रखने को समर्थ हुए हैं । पाठक प्रवर ! तनिक धीरज धरिये इनके रम्यगुणों का विशद वर्णन, ऐतिहासिक प्रमाणों सहित आगे के अध्यायों में, विस्तारपूर्वक किया जायगा । शाह देशल के लघु बान्धव का नाम लावण्यसिंह था, जिनकी गृहिणी का नाम लक्ष्मी था । लावण्यसिंह सचमुच लक्ष्मीपति की नाई सुख प्राप्त कर रहे थे । इनके जो दो पुत्र 1 थे उनके नाम क्रमसे ये थे- सामन्त और सोगण | दोनों लवकुश की तरह गंभीर, वीर और धीर थे । उच्च गुणोंने तो मानो इन युगल भ्राताओं के शरीर में ही निवास कर लिया हो ऐसा मान होता था । उधर जब लावण्यसिंह का भी सहसा देहान्त हो गया तो देशलशाह का गाईस्थ्य भार और भी बढ़ गया । देशलशाह दोनों भाइयों के वियोग से दो पंख कटे पक्षी की तरह
SR No.023288
Book TitleSamar Sinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy