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________________ श्रेष्टिगोत्र और समरसिंह। तथा प्राप्त कर चुकने के पश्चात् अपने राज्य व व्यापारिक व्यवसाय में कार्य करने लगे। यह तो निर्विवाद सिद्ध है कि लक्ष्मी ( money ) का स्वभाव सदा चंचल रहता है । जब वह अपने खुदके भावास में ही स्थिर नहीं रह सकती तो यह आशा कब की जा सकती है कि यह दूसरों के यहाँ जाकर भी अचल रहे । कई बार ऐसा भी संयोग होता है कि पौरुष की परीक्षा होने के हेतु भी सम्पत्ति जो पूर्वजोंसे पीछे छोड़ी गई हो या खुदने बहुत यत्न और परिश्रम से प्राप्त की हो सहसा विलायमान हो जाती है। ऐसा ही हाल गोसल का हुआ। यकायक लक्ष्मीने किनारा किया । ( Wealth with wings ) गोसल, जो एक दिन विपुल वैभवका अधिकारी था, यकायक प्रायः निर्धन हो गया। यद्यपि धन चला गया तथापि गोसल अपने तीनों पुत्रों सहित धर्म मार्ग पर दृढ़ रहा। इतना ही नहीं ऐश्वर्य के अभाव में झंझटों की न्यूनता के कारण वह धार्मिक कार्यों में विशेष रूप से तल्लीन हो गया। वह परम संतोषी था अतः उसे निर्धन होने के कारण किसी भी प्रकार का दुःख नहीं हुमा । जिस प्रकार सुवर्ण को तपाने से वह अधिक खरा होता जाता है उसी प्रकार गोसल भी कसौटी पर कसे जाने पर साहसी और दृढ़ साबित हुा । धर्मकृत्य करने में तर गोसल नमस्कार मंत्र का जाप करता हुआ इस नश्वर देहका परित्यागन कर स्वर्ग को सिधाया । उसके देहान्त के पश्चात् सुयोग्य जेष्ठ पुत्र माशाधरने सारे व्यवसाय और गृह कार्य को सभाला ।
SR No.023288
Book TitleSamar Sinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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