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________________ समरसिंह उपलदेव आदिभी अहिंसा धर्मावलम्बी ही थे । महाराजा चन्द्रगुप्त मौर्य, सम्राट् सम्प्रति, महाराजा खारवेल, शालिवाहन, विक्रमादित्य, शिक्षादित्य, आमराजा और कुमारपाल आदि अनेक वीर क्षत्रिय भी अहिंसा धर्म के अनुयायी थे । केवल उपासक ही थे सो नहीं ये तो हिंसा धर्म के प्रचारक भी थे परन्तु बाद में सदोपदेश के अभाव में कई स्वार्थी और पेटू लोगोंने अपनी विकार लिप्सा को तृप्त करने के लिये प्राणियों का संहार कर उनके मांस से अपने उदर को भरना शुरु कर दिया तथा 'हाडा ले डूबा गनगौर की तरह अपनी सत्ता के बल से कई लोगों को भी बरजोरी मांसभक्षक बनाया । ४८ इस तरह के और और प्रमाणों द्वारा बेसट ने राजा को अच्छी तरह से अहिंसा धर्म के महत्व को समझाया जिस का ऐसा प्रभाविक प्रभाव हुआ कि राजाने तत्काल प्रतिज्ञा की कि मैं भविष्य में किसी निरपराधी जीव का वध नहीं करूंगा तथा प्रति मास मैं कम से कम १५ दिन तो मांस भक्षण नहीं करूंगा । राजाजी के आदेश से नगर में अमरी पहडा बजवाया गया । रथयात्रा महोत्सवपूर्वक सानन्द निकाली गई । राजा जैत्रसिंह वेसट श्रेष्ठपर बहुत प्रसन्न हुए और कहने लगे कि प्रथम तो आप हमारे अतिथि और दूसरे आप मेरे धर्मोपदेशक हो अतः कृपया इस नगर में अवश्य निवास करिये ताकि मुझे समय समय पर धार्मिक उपदेश आप द्वारा प्राप्त होता रहे । इस प्रकार कहते हुए
SR No.023288
Book TitleSamar Sinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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