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समर
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समर्पण
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श्रद्धेय, परमयोगी, शान्तमूर्ति, निस्पृही,
- सद्गत गुरुवर्य श्रीरत्नविजयजी महाराज श्रापने मुझ भ्रमित को सद्मार्ग बताकर
उन्नत पथका पथिक बनाया आप ही की पवित्र सेवामें ... मेरी यह नगण्य कृति भक्ति, आदर और श्रद्धापूर्वक
समर्पित है।
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भनुचर,
मुनि ज्ञानसुन्दर.
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