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________________ R00000000000000OODoooog 8 दूसरा अध्याय ।४ Sooxxocc0000000000000003 श्रीष्टगोत्र और समरसिंह। मारे चरितनायक श्रेष्टिकुल भूषण समरसिंह के वंश के परिचय को लिखने के पूर्व यह बताना पतिउपयोगी होगा कि इस वंश की उत्पत्ति किस समय तथा किस परिस्थिति में हुई। साथ में यह भी बताना जरूरी है कि इस वंश के बनने में किस किस प्रकार के संयोग उपस्थित हुए थे । वर्तमान ऐतिहासिक युग के पूर्वीय व पाश्चात्य धुरंधर और परिश्रमी विद्वानों की खोज एवं शोधने यह सिद्ध कर दिया है कि आज से लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व भारतवर्ष की राजनैतिक, सामाजिक और धार्मिक अवस्था डांवाडोल अर्थात् वि. सल होकर भारत वर्ष को अवनति के पथ की ओर अग्रसर कर चुकी थी। भारत के कोने कोने से चीत्कार सुनाई देती थी। सिवाय त्राहि त्राहि के और कुछ भी कर्णगोचर नहीं होता था। वर्ण, जाति और उपजातियाँ की शृङ्खला में बंधी हुई जनता सर्वत्र अपनी सर्वशक्तियों का निरंतर दुरुपयोग कर रही थी। साम्यवाद की सुगंधमात्र भी अवशेष नहीं रही थी । अँप और नीच के भेद का विनाशकारी गरल सब मोर उगला जा रहा था। विषमता
SR No.023288
Book TitleSamar Sinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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