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________________ समरारास। २४९ सजण सञ्जण मिलीय तहिं अंगिहिं भंगु लियते । मनु विहसइ ऊलटु घणउ ए। तोडरू ए तोडरू ए तोडरू कंठि ठवंते ॥ ७ ॥ मंत्रिपुत्रह मीरह मिलिय अनु ववहारियसार । संघपति संघु वधावियउ। कंठिहिं ए कंठिहि ए कंठिहि घालिय जयमाल । तुरियघाटतरवरि य तहि समरउ करइ प्रवेसु । प्रणहिलपुरि वद्धामणउ ए। अभिनवु ए अभिनवु ए अभिनवु पुननिवासो ॥ ८ ॥ संवच्छरि इकहत्तरए थापिउ रिसहजिणिंदो । चैत्रवदि सातभि पहुत घरे नंदऊ ए नंदऊ ए नंदऊ जा रविचंदोह पासडसरिहिं गणहरह नेऊअगच्छनिवासो। . तसु सीसिहिं अंबदेवसरिहिं ।। रचियऊ ए रचियऊ ए रचियऊ समरारासो । एहु रासु जो पढइ गुणइ नाचिउ जिणहरि देह । अवणि सुणइ सो बयठऊ ए । तीरथ ए तीरथ ए तीरथजात्रफलु लेई ॥ १० ॥ ॥ इति श्रीसंघपतिसमरसिंहरासः ॥ PSEISEXSEO 8 स मा त. Presecxand
SR No.023288
Book TitleSamar Sinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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