SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 256
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ परिशिष्ट संख्या १] ऐतिहासिक प्रमाण संघपति देसलशाह और हमारे चरितनायक धर्मवीर समरसिंहने अपने गुरुवर्य उपकेशगच्छाचार्य श्री सिद्धसूरि की पूर्ण कृपा से पुनीत तीर्थ शत्रुजय के पंद्रहवे उद्धार को सफलतया सम्पादन कर अपने मानवजीवन को सफल किया जिसका विस्तृत वर्णन इस ग्रंथद्वारा पाठकों के समक्ष रखा गया है । जिन महापुरुषोंने उपयुक्त उद्धार को होते हुए अपनी आँखो से प्रत्यक्ष देखा था उनके हस्तकमलों से लिखित " नाभिनंदनोद्धार " और " समरारास" के आधार पर प्रस्तुत वृत्तान्त हिन्दी भाषा में लिखा गया है। अतः यह ग्रंथ ऐतिहासिक कहा जा सकता है। इस विषय में उस समय के तीन शिलालेख श्री शत्रुञ्जय तीर्थ पर की बड़ी हुँक से प्राप्त हुए हैं जिनको स्वर्गस्थ साक्षर चमनबाल दलालने गा० श्रो० सीरीज द्वारा प्रकाशित कराया है । ___ उनमें से एक शिलालेख तो हमारे चरितनायक की कुलदेवी की मूर्ति पर है, दूसरा संघपति के वृद्ध भाई आशधर ( सपत्नी ) की मूर्ति पर और तीसरा शिलालेख सिद्धगिरिमण्डन आदीश्वर भगवान की मूर्ति के लिये अमूल्य पाषाण देनेवाले राणा महीपाल की मूर्ति पर है । ये तीनों लेख साहसी
SR No.023288
Book TitleSamar Sinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy