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________________ फलही और मूर्ति. EK मजबूत गाडी सहित कुमारसेना नगर को भेज दिये गये । साथ में ऐसे सावधान और कायकुशल लोगों को भी भेजा जो फलही को बड़ी आसानी से निर्विघ्नतया ले जा सकें । फलही में इतना 1 भार था कि लोह की मँढी गाडी भी टूटकर चकनाचूर हो गई । मंत्रीवर पाता शाहने समरसिंह के पास आदमी भेजकर दूसरी माडी मंगवाई | शुभकार्य में यह विघ्न देखकर हमारे चरित नायक चिंता सागर में निमग्न हो गए। अंत में समरसिंहने शासनदेवी का स्मरण तथा आराधन किया । शासनदेवीने धाकर तुरन्त आश्वासन पूर्वक सर्वयुक्ति बतला दी । तदनुसार समरसिंहने जाग्राम से देवाधिष्ठित रथ मंगवा के बलवान् बैलों और चतुर मनुष्यों को कुमारसेना नामक ग्राम भेजा । बस, सब विघ्न दूर हो गये और मंत्रीश्वर पाता शाहने बड़ी खूबी से उस शिला को गाडीपर चढ़ा के रवाना की । ग्राम ग्राम के लोग कदम कदमपर उस भावी मूर्त्ति की पुष्प, चन्दन, कर्पूर और पुष्पों से पूजन करते थे क्रमशः सब खेरालुपुर आ पहुँचे। वहाँ के संघने भी भक्तिपूर्वक उस फलही का द्रव्यभाव से पूजन कर नगर प्रवेश करायो । खेरालुपर से रवाना हो पगपग पूजित होती हुई कितने ही दिनों बाद फलही भाइँ नामक ग्राम में पहुँची । उस समय फलही के दर्शन की उत्कंठा से देसलशाह अपने पूज्य आचार्य श्री १ समरारासकार ने इस विषय को संक्षिप्त से लिखा है परन्तु प्रबन्ध कारने इस को खूब विस्तृत रूप से उल्लेख किया है क्योंकि प्रबन्धकारने यह बातें सब अपनी भांखों से देखी थीं।
SR No.023288
Book TitleSamar Sinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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