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________________ समरसिंह १५२ गुरुराजने समरसिंह के साहस और धर्मस्नेह की अनुमोदना कर उचित सलाह आदि दी । वहाँ से चल कर हमारे चरितनायक जिन मन्दिर में पधारें जहाँ इन के पिताश्री प्रभु पूजा में निमम थे । सारी वार्ता उन के सामने वर्णन कर आपने निवेदन किया कि यदि आप की आज्ञा हो तो मैं तीर्थोद्धार के लिये 'अलपखान ' से आज्ञापत्र लिखवा लाऊं। इस से यह सुविधा रहेगी कि इस कार्य में किसी भी प्रकार की आपत्ति उपस्थित नहीं होगी। देशनशाहने अनुमति दे दी। ... हमारे चरितनायक राजनीति-कशल थे। इस कार्य को शीघ्रतया सम्पादित कराने के उद्देश से उस समय की परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए आपने राज्य की सहायता लेना सर्वथा उपयुक्त और उचित समझा । अतः बहुमूल्य वस्तुओं को लेकर आप अलपखान की राज्यसभा में उपस्थित हुए। नम्रतापूर्वक भेंट के पदार्थों को खान के सम्मुख रख आपने यथाविधि अभिवादन किया। अलपखान भी योग्य आदमी की कद्र करना खूब जानते थे । अतः खानने आप का यथोचित सत्कार किया और पूजा कि क्या वजह है कि आज आप भेंट सहित पधारे हैं। वैसे यह आप का घर है । मेरे योग्य कोई कार्य हो तो अवश्य कहिये में यथासाध्य उस कार्य को शीघ्र ही करूँगा। इस पर आपने श्री शत्रुजय तीर्थ पर किये गये यवनों के आक्रमण का वृतान्त सकि.
SR No.023288
Book TitleSamar Sinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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