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________________ - १३१ क्रम संख्या मूल गोत्र / शाखाएँ समरसिंह. | किस नगर में | प्रतिबोधक | विक्रम प्रतिबोध दिया आचार्य संवत् १ २ छाजेड़ ३ ४ अइवड़ भार्य लुणावतादि छाजेड़ सूरावतादि शिवगड़ राखेचा पुंगलियादि कालेर काग धामगाँव मत्यपुर पाटण वगारा कनौज ........ ५ गरुड धाडावतादि ६ सालेचा बोहरादि बघारेचा सोन्यादि कुंकुंम ९ सफला १० नक्षत्र ११ आभड १२ छावत १३ तुण्ड वागमारादि तुण्डग्राम १४ पिछोलिया पीपलादि १५ इथुण्डिया छपनयादि १६ | भंडोवरा | रत्नपुरादि १७ मल वीतरागादि १८ गुंदेचा गोगलियादि धूपियादि बोहरादि | जावलीपुर घीयादि वटवाडाग्राम कांकरेचादि सांभर कोजादि धारानगर पाल्हापुर हथूण्डी भंडोर खेड़ग्राम पावागढ़ देवगुप्तसूरि सिद्धसूरि x ६८४ ९४२ देवगुप्तसूरि ८७८ ककसूरि सिद्धसूरि १०४३ १०११ ९१२ 91 कक्कसूरि | १००९ देवगुप्तसूरि ८८५ सिद्धसूरि | १२२४ कक्कसूरि ९९४ 99 | १०७९ सिद्धसूरि १०७३ ३३ "9 देवगुप्तसूरि १२०४ ११९१ ९३९ ९४९ "" देवसूरि १०२६ 19 सिद्धसूरि *x * इन आचार्योंके नाम के कई प्राचार्य हुए हैं अर्थात् तीसरे पाट वेही नाम माते हैं । विशेष दृष्टव्य-इन के अतिरिक्त अन्य भी बहुत से गोत्र उपकेशगच्छ आचार्योंने बनाये जिन की वंशावलियों यदि भाज पर्यंत उपकेश गच्छीय महात्माओं की बहियों 'में विद्यमान हैं जिस का पूर्ण व्योश जन जाति महोदय में दिया जावेगा ।
SR No.023288
Book TitleSamar Sinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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