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________________ समरसिंह यक्षदेवसूरि- जिन्होंने दुष्काल के पश्चात् बज्रसेनसूरि की सन्तान 1 को सुव्यवस्थित कर चन्द्रादि चार कुलों की स्थापना की । १२२ देवगुप्तसूरि- जिन्होंने कान्यकुब्ज नरेश चित्रांगद को प्रतिबोध 1 दे कर अनेक मनुष्यों के साथ जैनी बनाया | यक्षदेवसूरि- जिन्होंने संघ या मन्दिर मूर्त्तियाँ के लिये प्राणार्पण करने को कटिबद्ध हो म्लेच्छों के आक्रमणों से धर्म की रक्षा की । नन्नप्रभ महत्तर ( एक महान् पदवीधर ) यक्षप्रभ महत्तर कृष्णर्षि महत्तर — जिन्होंने मरुभूमि - सपादल च और नागपुर (नागोर) प्रान्त में जैन धर्म का साम्राज्य स्थापन कर अनेक | मन्दिर मूर्त्तियों की प्रतिष्ठा की ककसूरि- जिन्होंने उच्चकोट, मरुकोट, राणकगढ़ और त्रिभुवनके राजा प्रजा को जैन बना के अहिंसाधर्म का प्रचार किया । | गढ़ 99 कक्कसूरि- जिन्होंने संचेति कुलभूषण कदर्पि के बनाये गये विशाल I मन्दिर की बड़ी ही चमत्कारपूर्ण प्रतिष्टा की ।
SR No.023288
Book TitleSamar Sinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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