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________________ ११४ समर सिंह करवाई | बाद में क्रमशः बिहार करते हुए आप भोयणी नगर पधारे । वहाँ के राजा को धर्मोपदेश दे जिनधर्म का प्रेमी और नेमी बनाया | आप जैनधर्म का प्रचार कर अपने पट्ट पर सिद्धसूरि को आचार्य नियुक्त कर स्वर्गवास सिधारे । आचार्य सिद्धसूरि का एक गुरुभाई था जिसका नाम वीरतथा साधु समुदाय 1 देव थे । वे प्रायः उपकेशपुर में ही रहते थे व श्रावकों को पढ़ाया करते थे । आप बड़े विद्वान और अनेकानेक विद्याओं में पूरे प्रवीण थे । आपकी प्रशंसा सुनकर एक योगी आया । उस समय आप एक स्तम्भ पर खड़े थे | योगीने अपनी करामत दिखलाने को उनके पैर स्तम्भ पर चिपका दिये। यह देख वीरभद्रने इस से भी बढ़ कर चमत्कार दिखाने के उद्देश से स्तम्भों को हुक्म दिया कि चलो और वह स्तंभ आज्ञानुसार वीरभद्र को लिये हुए आगे बढ़े । यह करामत देखकर योगी क्षमा मांग नमस्कार कर वीरभद्र का शिष्य बन गया । वि. सं. १२५२ में उपकेशपुर नगर में एक म्लेच्छ की सेना चढ़ कर आई । उस समय आप अपनी आकाशगामिनी विद्या के कारण उस सेना की खबर लिया करते थे । आपकी मोजूदगी में जब सेना नगर के बहुत निकट आ गई तो श्रावकने भय से भ्रान्त हो भगवान् श्री महावीर स्वामी की मूर्ति के रक्षणार्थ मूल गंभारे के आडे पत्थर लगा दिये और जनता नगर १ ततः श्रीवीर बिंबस्य पुरः पाषाण बीडकं । दत्वा द्वारिनिश्ससारतावन्म्लेच्छा उपागता ।। ५०८ ।। }30 उ० ग० च
SR No.023288
Book TitleSamar Sinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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