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________________ उपकेशगच्छ - परिचय | १०१ 1 कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्यने पद्मप्रभ वाचकाचार्य के भाषणों की प्रशंसा सुन कर एकवार उन्हें अपने यहाँ व्याख्यान देने के निमित्त बुलवाया । यह व्याख्यान ऐसा लोकप्रिय हुआ कि पाटणनगर के कोने कोने में इन की भूरि भूरि प्रशंसा श्रवणगौचर होने लगी । स्वयं हेमचन्द्राचार्यने परोक्षरूप से आप का व्याख्यान सुना और उस की खूब तारीफ की । आपने यह सोच कर कि यदि पद्मप्रभ मेरे पास रहे तो जिनशासन का बडा भारी हित हो, जिनभद्र से इन के लिये याचना की । पर यह कब संभब था कि ऐसे शिष्यरत्न को कोई गुरु अपने हाथ से जाने दे | जिनभद्रने सोचा कि हेमचन्द्र जैसे आचायों का वचन न मान कर यहाँ रहना उचित नहीं अतः तुरन्त वहाँ से विहार कर दीया । इन्होंने सेनपल्ली अटवी के रास्ते से विहार इस कारण किया कि लोगों की भीड़ आकर कहीं यहाँ और न रोक ले । हेमचन्द्राचार्यने इन के इस भांति चले जाने की बात राजा कुमारपाल से कही । कुमारपालने कहा कि मैं वास्तव में कैसा मंदभामी हूं कि ऐसे उत्तम संतपुरुषों की अधिक सेवा न कर सका । आपने कई पुरुषों को इन मुनियों को लाने के लिये भेजा परन्तु सब प्रयत्न विफल हुआ क्यों कि वे कहीं न मिले । जिनभद्रापाध्याय और वाचनाचार्य मरुधर निवासियों के सौभाग्य से नागपुर नगर में पधारे । वहाँपर रह कर आपने असीम उपकार किया । वहाँ अपसे - संघने विनय की कि आप यहाँ कुच्छ अरसा और ठहरिये परंतु आप न रुके । वहाँ से
SR No.023288
Book TitleSamar Sinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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